विसर्जित प्रतिमा में कहीं प्राण की है तलाश, घुल चुके सब रंग रोगन माटी, रह गई
केवल काठ की संरचना, यायावर
जीवन पुनः खोजता है स्थायी
निवास, विसर्जित प्रतिमा
में कहीं प्राण की है
तलाश । नदी
अपने वक्ष
स्थल
में सब कुछ लेती है समेट, निभा जाती है
मातृ सलिला की विराट भूमिका,
उसके दृष्टि में सब कुछ है एक
समान, क्या श्रद्धा सुमन
और क्या आवर्जना,
बहा ले जाती है
हर एक को
अपने साथ
सुदूर
भवसागर की ओर, उसे नहीं मिलता
अनंतकाल तक कोई अवकाश,
विसर्जित प्रतिमा में कहीं
प्राण की है
तलाश ।
- - शांतनु सान्याल