वक़्त का घूमता आईना सभी चेहरों को याद
नहीं रखता, सुदूर पहाड़ियों में उठ रहा है
धुआं या बादलों की है चहलक़दमी,
दूरबीनों से हर एक सत्य नहीं
दिखता, हर एक मोड़ पर
हैं लिखे हुए गंतव्य के
ठिकाने, ताहम जिस
की तलाश है उस
का पता नहीं
मिलता,
अभिलाष के बीजों को बोया किए बड़ी उम्मीदों
के साथ, हर एक बीज लेकिन अंकुरित हो
कर नहीं उभरता, अल्पायु होते हैं हर्ष के
पल, किसे ख़बर कब जाएं बिखर,
शिशिर बिंदु कमल पात पर
ज़्यादा देर नहीं ठहरता,
ज़रुरी नहीं उपासना
में हो कमी, बहुत
कुछ चाहता
है दिल,
एक
ही जीवन में लेकिन बहुत कुछ नहीं मिलता,
वक़्त का घूमता आईना सभी चेहरों को
याद नहीं रखता ।
- - शांतनु सान्याल
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 जुलाई अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!