खुले बदन बारिश में, फिर भीगने की चाहत जागे,
नदी पहाड़ का खेल है ज़िन्दगी, उम्र के पीछे भागे,
गहन प्रणय तुम्हारा बना जाता है मुझे अश्वत्थ वृक्ष,
देह प्राण में बंध चले हैं अदृश्य मोह के रेशमी धागे,
अनगिनत सिंधु के पार है वो युगान्तर से प्रतिक्षारत,
छाया की तरह चलता है जो कभी पीछे कभी आगे,
ख़ुद को उजाड़ कर चाहा फिर भी थाह रहा अज्ञात,
निःसीम गहराई, उम्र से कहीं अधिक मुहोब्बत मांगे,
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 21 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपके भावों की गहराई भी जीवन के इस फलसफे सी मोहक है! हार्दिक शुभकामनाएँ शांतनु जी! 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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