उस एक बिंदु तक पहुँचने के लिए हर शख़्स
रहता है बेक़रार, कभी चाहता है ओढ़ना
इंद्रधनुषी पोशाक, सजल बूंदों के
चन्द्रहार, कभी गहन चुप्पी
और कभी उन्मुक्त
जल प्रपात, हर
एक चेहरे
के नेपथ्य में छुपे होते हैं अदृश्य प्रतिबिंब कई
हज़ार, उस एक बिंदु तक पहुँचने के लिए
हर शख़्स रहता है बेक़रार। उस क्षण
भंगुर ख़्वाब में है अज्ञात स्वर्ग
का कोई नाज़ुक अहसास,
या प्रणय सुधा की
प्यास, हर
एक सोच में रहती है किसी न किसी मंज़िल
की आस, अंदर का रहस्य होता है बहुत
गहरा, आंखें देखती हैं केवल फूलों
से सजा मुख्य द्वार, उस एक
बिंदु तक पहुँचने के लिए
हर शख़्स रहता है
बेक़रार। हम
बहुधा उसे
पा कर भी खो देते हैं, बहुत कठिन है अग्नि
वलय से हो कर गुज़रना, हर हाल में तै
है मुट्ठियों में बंद, मोह माया का
एक दिन बिखरना, अनंत
कालीन प्रयास से
कहीं जा कर
मिलता
है विश्वसनीयता का पुरस्कार, उस एक - -
बिंदु तक पहुँचने के लिए हर शख़्स
रहता है बेक़रार।
* *
- - शांतनु सान्याल
28 सितंबर, 2022
27 सितंबर, 2022
15 सितंबर, 2022
त्रिकोण के मध्य - -
कुछ नदियां अपने गर्भ में रखती
हैं अंतहीन गहराइयां, देह की
असंख्य शिराओं से हो
कर बहते हैं अणु
जल स्रोत, वो
बहा ले जाते
हैं अपने
संग
सड़े गले फूल, शव वस्त्र, भीगे
हुए मोह डोर, स्वप्निल नेहों
की जालीदार छाइयाँ ।
कई रातों की कोई
सुबह नहीं
होतीं
फिर भी उन्हें चलना होता है
दिगंत पार तक, जीवन के
वक्ष स्थल में जलता
रहता है एक
अमरदीप,
बस हम
देख
नहीं पाते इस पार से उस पार
तक, सुबह घास के ऊपर
बूंद बूंद बिखरी होती
हैं अनगिनत
कहानियां ।
हर एक
प्रातः
मैं चाहता हूं एक नई शुरुआत,
कुछ वृक्ष आकाश कभी
नहीं छूते लेकिन
उनके अदृश्य
मूल वसुधा
के सीने
में
आंक जाते हैं नए पौधों के देश
विराट, कभी नहीं मरती
नारी, नदी और वृक्ष
की परछाइयां,
इन्हीं तीनों
के मध्य
मैं
खोजता हूँ अपने अस्तित्व की
अशेष गहराइयां ।
**
- - शांतनु सान्याल
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