04 मई, 2022

मुहूर्तों के उस पार - -

ये काठ के खम्बे ही हैं जो थाम रखे हैं
पुल का अस्तित्व, दोनों पार की
दुनिया है सलामत इसी
एक विश्वास पर,
गुज़रना है
हमें
इसी जर्जरित राह से हो कर, नज़र है
टिकी हुई उस पार की ज़िन्दगी
पर, मुहूर्तों का अंक है एक
भूल भुलैया, उम्र नहीं
गुज़रती सपनों
के पूर्वाभास
पर, ये
काठ
के खम्बे ही हैं जो थाम रखे हैं पुल -
का अस्तित्व, दोनों पार की
दुनिया है सलामत इसी
एक विश्वास पर।
ख़ुशियों की
साझेदारी
में ही
है
छुपी हुई दिल की अदृश्य ख़ूबसूरती,
जबकि आजन्म हम भटकते रहे
इस घाट से उस घाट के
दरमियां, फिर भी
पाना नहीं
आसां,
दुःख
दर्द से मुक्ति, कुछ भी असर नहीं -
होता चाहतों के मोहपाश पर,
ये काठ के खम्बे ही हैं जो
थाम रखे हैं पुल का
अस्तित्व, दोनों
पार की
दुनिया
है सलामत इसी एक विश्वास पर। - -
* *
- - शांतनु सान्याल
 

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