17 जुलाई, 2020

भूमिका - -

भीगने की ख़्वाहिश होती है
अंतहीन, हथेलियों से
लेकिन फिसल ही
जाते हैं लम्हे
बेहतरीन ।
गहन
आंखों में दूर दूर तक होती है
मरुधरा, दिखाएं तुम्हें भी
भूगर्भीय स्रोत, ग़र
पलकों में कुछ
देर ठहरो
ज़रा।
मुखौटों के शहर में आईना था
बहोत अकेला, भीड़ में
भटकता रहा वो
रात भर,
सुबह देखा तो न था कोई तम्बू
न ही घूमता ख़्वाबों का
 कोई हिंडोला ।
मेरी सांसों
से उठती
हैं चंदन की महक ये तुम्हारा
 बयान है, शायद सच हो,
जिस्म जल चुका तब
कहीं आकाश
मेहरबान
है ।
इस शहर में कभी हम भी थे
बहोत मशहूर, वक़्त का
तक़ाज़ा है, कि अब
लोग न पहचानने
पर हैं
मजबूर, ये दुनिया की है अपनी
ही रीत, हर कोई निभाता
है यहां अपनी अपनी
भूमिका ज़रूर ।
- - शांतनु सान्याल











9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आदरणीय सर, सादर नमन। बहुत ही प्यारी कविता। शायरी के अंदाज़ में बहुत ही सुंदर सन्देश दिया।आपके ब्लॉग पर पहली बार आ कर अच्छा लगा।
    आपसे अनुरोध है कि मेरे भी ब्लॉग पर आएं जहाँ मैं अपनी स्वरचित कविताएं डालती हूँ।
    अपने ब्लॉग की लिंक कॉपी नहीं कर पा रही पर यदि आप मेरे नाम पर क्लिक करें तो वो आपको मेरे प्रोफ़ाइल पर ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग के नाम "काव्यतरंगिनी" पर क्लिक करियेगा, आप मेरे ब्लॉग पर पहुंच जायेंगे। आपके प्रोत्साहन व आशीष के लिए हृदय से उभरी रहूँगी।
    धन्यवाद

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।

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