20 अप्रैल, 2019

आख़िरकार - -

सुबह और शाम के दरमियां बहुत कुछ
बदल ही जाता है, कुछ मुरझाए फूल
गुलदान में झुके रहते हैं और
परिश्रांत सूरज अन्ततः
ढल  ही जाता है।
अब किस से
कहें दिल
की
बात, तन्हाइयों में ये ख़ुद ब ख़ुद बहल
ही जाता है। यूँ तो सारा शहर है
उजाले में डूबा हुआ, फिर भी
अँधेरे का जादू चल ही
जाता है। हमने
लाख चाहा
कि
तुम्हारा इंतज़ार न करें, फिर भी, हर -
एक आहट में, नादां दिल बेवजह
मचल ही जाता है। सुबह और
शाम के दरमियां बहुत
कुछ बदल ही
जाता
है।

* *
- शांतनु सान्याल

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