अपनी अपनी चाहत का है
अपना ही अलग पैमाना,
कोई सुख तो है ज़रूर,
मोती और सीप के
दरमियां,
उस बंद दरवाज़े का रहस्य,
चिरंतन हैं अनजाना।
मेघों का अस्तित्व,
नहीं मिटा
पाए वज्रों के हुंकार, बरसने
की ज़िद्द में, दुश्वार था
उनका रुक जाना।
उस दिगंत
रेखा पर जा मिलते हैं - - -
तिमिर -आलोक,
एक तीर
उठता
धुंआ, दूसरी ओर बेसुध है
ज़माना। पहेलियों का
शहर है, हर मोड़
से जुड़े मायावी
रस्ते, इस
मोह के
सफ़र से मुश्किल है दोस्त
लौट आना।
* *
- शांतनु सान्याल
अपना ही अलग पैमाना,
कोई सुख तो है ज़रूर,
मोती और सीप के
दरमियां,
उस बंद दरवाज़े का रहस्य,
चिरंतन हैं अनजाना।
मेघों का अस्तित्व,
नहीं मिटा
पाए वज्रों के हुंकार, बरसने
की ज़िद्द में, दुश्वार था
उनका रुक जाना।
उस दिगंत
रेखा पर जा मिलते हैं - - -
तिमिर -आलोक,
एक तीर
उठता
धुंआ, दूसरी ओर बेसुध है
ज़माना। पहेलियों का
शहर है, हर मोड़
से जुड़े मायावी
रस्ते, इस
मोह के
सफ़र से मुश्किल है दोस्त
लौट आना।
* *
- शांतनु सान्याल
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