न कर दिल के दरवाज़े
बंद, यूँ बेरुख़ी से
दोस्त, बहोत
मुश्किल
से कभी दस्तक ए बहार
होते हैं। यूँ तो सरसरी
निगाहों की कमी
नहीं जहां में,
लेकिन
बहोत कम तीर ए नज़र
दिल के पार होते हैं।
उनसे मिल कर
अक्सर
तिश्नगी बढ़ जाती है
बारहा, जो ख़ामोश
रह कर भी
गहरे,
इश्क़ ए तलबगार होते
हैं। यूँ तो, वो नहीं
मुख़ातिब
मुझसे,
फिर भी, न जाने क्यूँ वो
मेरे पहलू में इक नहीं,
हज़ार बार
होते हैं।
* *
- शांतनु सान्याल
बंद, यूँ बेरुख़ी से
दोस्त, बहोत
मुश्किल
से कभी दस्तक ए बहार
होते हैं। यूँ तो सरसरी
निगाहों की कमी
नहीं जहां में,
लेकिन
बहोत कम तीर ए नज़र
दिल के पार होते हैं।
उनसे मिल कर
अक्सर
तिश्नगी बढ़ जाती है
बारहा, जो ख़ामोश
रह कर भी
गहरे,
इश्क़ ए तलबगार होते
हैं। यूँ तो, वो नहीं
मुख़ातिब
मुझसे,
फिर भी, न जाने क्यूँ वो
मेरे पहलू में इक नहीं,
हज़ार बार
होते हैं।
* *
- शांतनु सान्याल
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