29 सितंबर, 2014

बूंदों का हिसाब - -

उन गर्म बूंदों का हिसाब न दे - -
सका कोई, जो आँखों से
टूट कर निःशब्द,
भाप बन गए,
वो तमाम
दर्द
जो मरियम के सीने में थे दफ़्न
कहीं, वक़्त के साथ बंजर
ज़मीं बन गए, फिर
भी निकलती
है दिल
से दुआएँ दूर तक, मसीहा न सही
वो तमाम अपने पराए, कम
अज़ कम इंसान तो बन
गए होते, क्या
मानी है
उन पवित्र गुम्बदों की रौशनी का,
ग़र इतिहास लिखा जाए
मासूमों के ख़ून से,
काश वो समझ
पाते दर्द,
किसी बिलखती माँ की आँखों का.

* *
- शांतनु सान्याल

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

In the Mist of a Memory by Hanne Lore Koehler

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