10 सितंबर, 2014

घूमता रंगमंच - -

मुझे मालूम है अच्छी तरह, दुनिया
का वही अनवरत लेनदेन,
निःशर्त यहाँ कोई
नहीं चलता
साथ
दो क़दम, यूँ तो कहने को है अनंत -
अनुबंध का साथ अपना, न
तेरे चेहरे में होगी कोई
दीर्घ, दुःख की
लकीर !
न मेरी निगाहों में है बाक़ी क़तरा ए
नमी, कि वक़्त हर घाव को
भर देता है बिना कुछ
कहे, जानता हूँ
तुम भी
इक दिन भूला दोगे सब कुछ, पलक
गिरते ही बदल जाते हैं सभी
मंज़र, सिर्फ़ घूमता रह
जाता है रंगमंच
सामने।

* *
- शांतनु सान्याल

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by Colleen Sanchez

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