फिर मुझे ख़ुद की तलाश है, खो सा गया हूँ मैं
मुद्दतों से जाने कहाँ, वो कहते हैं कि -
मेरी मंज़िल सिर्फ़ तेरे पास
है, इक जुस्तजू जो
गहराए
शाम ढले, यूँ लगे लाफ़ानी कोई ख़ुशबू, रूह
ए इश्क़ के बहोत आसपास है, न
देख मुझे फिर उन्ही क़ातिल
निगाह से, कि यूँ बारहा
जां से गुज़रना
नहीं -
आसान है, झुकी नज़र पे रहने दे कुछ देर - -
और अक्स ए कहकशां, कि ज़िन्दगी
आज मेरी ज़रा उदास है - -
* *
- शांतनु सान्याल
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