14 जून, 2013

बात ही बात में - -

इक सुरूर जो ले जाए होश उड़ा, बात ही
बात में, इक शब्का जो घेरे जिस्म
ओ जां, मुख़तलिफ़ अंदाज़
में ! फ़र्क़ करना हो
मुश्किल जब
दिन ओ
रात में, इक ख़ुमारी जो बन जाए कोई
ठहरा हुआ तुफ़ान, न डुबोए, न ही
उभरने दे, अनबुझ अंगार
की मानिंद जले रूह
मेरा, यूँ भरी
बरसात
में ! दूर तलक हैं बिखरे उनकी निगाहों
के साए, फिर भी इक सराब ए
तिश्नगी सी है, न जाने
क्यूँ इस हयात में,
इक सुरूर
जो ले जाए होश उड़ा, बात ही बात में - -
* *
- शांतनु सान्याल

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