29 जून, 2013

मामुल मुताबिक़ - -

वो कुरेदते हैं बुझी राख कुछ इस तरह 
कि इक गुमां सा रहता है फिर 
सुलगने का, न खेल यूँ 
बार बार, मेरे 
ख़ामोश 
दर्द ए उल्फ़त से, कहीं झुलस कर न -
रह जाए तेरी ख़्वाब की दुनिया, 
रहने दे मुझे यूँ ही अँधेरे 
में मुब्तला,कि इक 
खौफ़ सा 
रहता हर वक़्त दिल को, कहीं फिर न 
जल उठे बुझते चिराग़ ज़िन्दगी 
के, फिर ज़माने में कहीं 
न उठे तबाह कुन 
तूफ़ान !
कि मैं तंग हो चुका हूँ यूँ बारहा जीने -
मरने से, रहने दे मुझे मेरे हाल 
पे मामुल मुताबिक़ !
कुछ वक़्त 
चाहिए 
दर्द को दवा तक तब्दील होने में - - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

26 जून, 2013

ख़ुद की तलाश - -

फिर मुझे ख़ुद की तलाश है, खो सा गया हूँ मैं 
मुद्दतों से जाने कहाँ, वो कहते हैं कि -
मेरी मंज़िल सिर्फ़ तेरे पास 
है, इक जुस्तजू जो 
गहराए 
शाम ढले, यूँ लगे लाफ़ानी कोई ख़ुशबू, रूह 
ए इश्क़ के बहोत आसपास है, न 
देख मुझे फिर उन्ही क़ातिल 
निगाह से, कि यूँ बारहा 
जां से गुज़रना 
नहीं -
आसान है, झुकी नज़र पे रहने दे कुछ देर - - 
और अक्स ए कहकशां, कि ज़िन्दगी 
आज मेरी ज़रा उदास है - -
* * 
- शांतनु सान्याल 

14 जून, 2013

बात ही बात में - -

इक सुरूर जो ले जाए होश उड़ा, बात ही
बात में, इक शब्का जो घेरे जिस्म
ओ जां, मुख़तलिफ़ अंदाज़
में ! फ़र्क़ करना हो
मुश्किल जब
दिन ओ
रात में, इक ख़ुमारी जो बन जाए कोई
ठहरा हुआ तुफ़ान, न डुबोए, न ही
उभरने दे, अनबुझ अंगार
की मानिंद जले रूह
मेरा, यूँ भरी
बरसात
में ! दूर तलक हैं बिखरे उनकी निगाहों
के साए, फिर भी इक सराब ए
तिश्नगी सी है, न जाने
क्यूँ इस हयात में,
इक सुरूर
जो ले जाए होश उड़ा, बात ही बात में - -
* *
- शांतनु सान्याल

09 जून, 2013

मरकज़ गुल - -

अचानक शाम की बारिश, और उसकी
पुरअसरार मुस्कराहट, ज़िन्दगी
तलाशती है, फिर जीने
की वजह, उस
भीगे
अहसास में उभरते हैं कुछ ख़्वाब - - -
ख़ूबसूरत ! लम्हा लम्हा इक
ख़ुमारी जो ले जाए किसी
शब गरेज़ान की
जानिब,
उसकी मुहोब्बत है पोशीदा बूंद कोई दर
मरकज़ गुल, जो रात ढले बन
जाए अनमोल मोती,
लिए सीने में
बेपायान
ख़ुशबू !
* *
- - शांतनु सान्याल

मरकज़ गुल - फूल के भीतर
बेपायान - अंतहीन
 शब गरेज़ान- मायावी रात्रि

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