जो मिल गए चलते चलते कहीं, किसी
मोड़ पे वो कभी, मुस्कराए ज़रूर
देखा भी इक नज़र और
बादलों की मानिंद
बिन रुके
गुज़र गए, ज़िन्दगी ठहरी रही देर तक उसी
जगह जहाँ से रूठा था सावन सदियों
पहले, कि बियाबां के सिवा अब
यहाँ कुछ भी नहीं, न कोई
शिकायत, न ही बाक़ी
ख्वाहिशों की
फ़ेहरिस्त,
बुझ चले हैं चाहत के वो सभी चिराग़, उम्र
का भी अपना है अलहदा हिसाब,
न छेड़ शाम ढलते फिर
वही पुरानी बात,
मुश्किल से
ज़िन्दगी को मिली है, इक मुश्त निजात, न
कर फिर मुतालबा मेरी जां दोबारा,
कि मुमकिन नहीं बार बार यूँ
इश्क़े ज़हर पीना, हर
लम्हा जीना और
हर लम्हा
मरना,
रहने दे मेरा अक्स अजनबी वक़्त के आइने में,
गुमशुदा होना चाहे है दिल फिर तेरे
शहर में - - -
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