उठती हैं कहाँ से ये दीर्घ श्वास की बूंदें
साँझ से बोझिल है ज़िन्दगी की
राहें,राहतों का हिसाब
रखना न था आसां,
न जाने क्या
पिलाते
रहे
वो दवा के नाम पर, हमने भी की बंद
आँखें, मुहोब्बत के नाम पर, कहाँ
से आती हैं ये रुक रुक की
सदायें, दिल को अब
तलक यकीं है
वो चाहते
हैं मुझे,
ये वहम ही हमें रोक रखता है क़रीब
उनके, वर्ना बहारों को गुज़रे
ज़माना हुआ - - -
- - शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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PAINTING BY Harry Brioche_evening_sky
खूबसूरत कविता....
जवाब देंहटाएंthanks a lot arun ji regards
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