वो इश्क़ जो आप चाहें कि दे न सकूंगा
है बहुत मुश्किलभरी जिंदगी की राहें,
और कहीं दोस्त मेरे, ढूंढ़ लें मंज़िल नया
इस राह पे हैं सिर्फ घने तीरगी के बाहें ,
इस सराबे ख़ुशी का सऊर न दिला कि
खोजतीं हैं मुझको फिर मतीर निगाहें,
-- शांतनु सान्याल
सराब - मरीचिका
सऊर - चाहत,
मतीर - भीगी
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