थमीं सी हैं बूंदें नाज़ुक शाख़ की
झुकी हुई, टहनी में सांस रोके -
कि देखता हूँ मैं अक्सर तुम्हें
खुले आसमां की तरह, रात ढले
शबनमी कोई अहसास लिए -
उतरतीं हैं ख़लाओं से हौले हौले
नूरे ख़्वाब मद्धम मद्धम, ये
रात है बहुत ही कम, किसी की
इबादत के लिए, उम्र भर की
दुआओं में है कोई शामिल इस
क़दर,गोया छू लिया हो बेख़ुदी
में किसी को ख़ुदा समझ कर,
है आबाद उनकी आँखों में कोई
लापता हसरतों की बस्तियां -
कि मैं बारहा डूब कर ज़िन्दगी
की तरह प्यार करता हूँ, हर
लम्हा किसी का इंतजार करता हूँ.
--- शांतनु सान्याल
झुकी हुई, टहनी में सांस रोके -
कि देखता हूँ मैं अक्सर तुम्हें
खुले आसमां की तरह, रात ढले
शबनमी कोई अहसास लिए -
उतरतीं हैं ख़लाओं से हौले हौले
नूरे ख़्वाब मद्धम मद्धम, ये
रात है बहुत ही कम, किसी की
इबादत के लिए, उम्र भर की
दुआओं में है कोई शामिल इस
क़दर,गोया छू लिया हो बेख़ुदी
में किसी को ख़ुदा समझ कर,
है आबाद उनकी आँखों में कोई
लापता हसरतों की बस्तियां -
कि मैं बारहा डूब कर ज़िन्दगी
की तरह प्यार करता हूँ, हर
लम्हा किसी का इंतजार करता हूँ.
--- शांतनु सान्याल
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