चिरस्थायी कुछ भी नहीं -
अनंत पथ के सभी समीकरण
आखिर में शून्य हो गए
मुकुट व् मौसम में अंतर है
बहुत ही थोड़ा -
न भेजो झंझा के हाथों कोई
संदेस, वाष्पीकृत मेघ हैं, पागल
न जाने कहाँ बिखर जाएँ,
सीमाविहीन हैं परागगण
पंखुडियां हैं सदैव रंग बदलती,
भावनाओं के बुलबुले, स्वप्नों के
संकलन, अपनों के चित्रावली,
आँखों में सहेज रखें तो बेहतर !
जीवन को बांधना है मुश्किल, न
पूछो कि किसने किसे पाया
किसने किसे खोया
ये पहेली रहने भी दो, लहर और
चांदनी के मध्य, कि मुमकिन नहीं
दही का दुग्ध होना, तत्व जो है जन्मा
विलुप्ति से मुकर नहीं सकता,
शब्दों के खेल थे सभी दर्शन
भष्म हो कर अंत में सभी बह गए
नीरव नदी विसर्जन में कभी
बाधक नहीं बनती !
--- शांतनु सान्याल
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