वो सूर्य रथ के महा योद्धा अग्निवीर धर रूप विकराल
पांचजन्य से झंकृत हो समर पथ, आलोकित नभ पाताल
सघन मेघ से हो प्रगट हुंकारित हे त्रिनेत्र महाकाल
भरत भूमि करे त्राहि त्राहि, पूर्ण वरदान दे, हे! त्रिकाल
सनातनी चाहें परित्राण त्वम् लौह हस्ते भविष्य काल
सर्व मनु वंशज वृन्द लें सपथ, प्रति क्षण साँझ सकाल
दे आशीष कि हम हों एक, हो चहुँ ओर प्रेम बहाल
जाति पांति भेद विभेद विस्मृत हों, जले एक मशाल
हिंदुत्व बने विश्व पुरोधा, संगृहीत एक कुटुंब विशाल
हम दर्शायें पथ जीवन का, रच जाएँ नव अमिट मिशाल
हो पुष्प वर्षा जिस पथ जाएँ,हिंदुत्व पाए अमरत्व चिरकाल //
-- शांतनु सान्याल
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