आज फिर क्यों फल्गु तट पर आ खड़े
नत मस्तक वो सर्व अतृप्त प्रेत गण
चाहें क्यों घट श्राद्ध स्वयं का,
आत्मीय स्वजन ने किया हो शायद
परित्याग, पितृ दोष माथे कौन लेगा
केश मुन्चन, यज्ञोपवित,अधोवश्त्र
धारित वो चिर परिचित मुख,
करबद्ध क्षमा याचक सरिता तीर,
शांत सलिल ने कहा - हे वत्स, जाओ
प्रथम करो प्रायश्चित, देश हित में कुछ
करो कार्य, राजभोगी से राज योगी बनो,
तत्पश्चात देशप्रेम का अर्घ्य लो हाथों में
कश्चित् पुनर्जन्म में मिले मोक्ष - तथास्तु //
-- शांतनु सान्याल
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