17 जून, 2011

नज़्म - - मुस्कराने का सबब

कहाँ से आतीं हैं,
कराहों में डूबी ये आवाज़ें -
कि ज़िन्दगी बेमानी हुई जाती है,
कहाँ कोई फिर आईना है
टूटा, कि अक्श है मेरा
फिर बिखरा हुआ,
शाम है रंगीन, चिराग़ों से उठती
हैं, मजरूह सी रौशनी क्यूँ
न जाने कौन फिर किस मोड़ पे
किसी के लिए, दिल
की दुनिया लुटाये बैठा है,
वो तमाम उदास चेहरे खड़े हैं
उस चौक में किसी की इक झलक
पाने की उम्मीद लिए हुए -
सुना है वो कोई मसीहा था लेकिन
ज़माने ने उम्र से पहले उसे
सलीब पे चढ़ा दिया,
वो इश्तेहार जो मौसम ने बारहा
चिपकाया था वादियों में
कि लौटेंगी बहारें इक दिन
हमने इंतज़ार में तो उम्र गुज़ार दी
न देखा किसी को मुस्कराते
इक मुसलसल मक़बरा ए ख़ामोशी
के सिवाय कुछ भी तो न था
लोग कहते रहे यहीं पे कहीं हैं
फ़िरदौस की सीड़ियाँ, धुंध में डूबे
हुए थे सभी रास्ते, हम ने
कहीं तुम्हें देखा नहीं, घाटियों में
दर्द का धुआँ सा उठता रहा,
कराहों  की बस्तियां जलती रही
आईने टूटते रहे, चिराग़ बुझते रहे
सुबह कभी तो लाये  मुस्कराने का
सबब, हर शख्स ज़रा जी
तो ले मुख़्तसर ज़िन्दगी - - -
- - शांतनु सान्याल

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. शाम है रंगीन, चिराग़ों से उठती
    हैं, मजरूह सी रौशनी क्यूँ
    न जाने कौन फिर किस मोड़ पे
    किसी के लिए, दिल
    की दुनिया लुटाये बैठा है,bahut sunder bhav liye shaandaar rachanaa.badhaai.



    please visit my blog.thanks

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  2. और इसी इन्तेज़ार में जिंदगी खत्म हो जाती है ... वो मसीहा नहीं आता ...

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  3. कराहों की बस्तियां जलती रही
    आईने टूटते रहे, चिराग़ बुझते रहे
    सुबह कभी तो लाये मुस्कराने का
    सबब, हर शख्स ज़रा जी
    तो ले मुख़्तसर ज़िन्दगी,

    पूरी नज़्म ज़िंदगी को बयाँ करती हुई ..बहुत अच्छी लगी ..

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  4. kitne ehsaas toote bikhre honge, kitne shabdo ne thandi saanse bhari hongi jab is rachna ka srijan hua hoga....bas ek dhundh hi faili si nazar aati hai jo nami samaite hai.

    sunder sashakt rachna.

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  5. thanks anamika di - love and regards, your comment is a drop of water in the desert, love and regards with respect

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