विनिद्र मेरी आँखें देखती हैं क्षितिज पार, हस्त रेखाओं में हैं सिमटे
हुए जीवन सार, शीर्षक
विहीन ही रही हृदय
तल की कथा,
अपने सिवा
कोई
नहीं सुनता अंतर व्यथा, सभी प्रतिरोध
के बाद भी जाना है पारापार, हस्त
रेखाओं में हैं सिमटे हुए जीवन
सार । हम दौड़ते रहे उम्रभर
मायाविनी रात के पीछे,
अथाह गहराइयां थी
स्तम्भित धरातल
के नीचे, मुक्त
हो न सके
जकड़ता
रहा
मोह का कारागार, हस्त रेखाओं में हैं
सिमटे हुए जीवन सार । बहुत
दिनों के बाद जब खोली
नेह की गठरी, अपने
हिस्से में शून्य,
चारों दिशाएं
गूंगी बहरी,
अनवरत
निम्नगामी होते हैं रिश्तों के जलधार,
हस्त रेखाओं में हैं सिमटे
हुए जीवन सार ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 जून 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह ❤️
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