न जाने कितने बिंदुओं पर भटकती है ज़िन्दगी, शमा की तरह लम्हा लम्हा सिहरती है ज़िन्दगी,
लौट चुके हैं, सभी चाहने वाले अपने अपने घर,
किसी की याद में भला कहाँ ठहरती है ज़िन्दगी,
मंदिर ओ नदी के दरमियां फ़ासला कुछ भी नही,
जलस्पर्श के लिए मुश्किल से उतरती है ज़िन्दगी,
सारा शहर ख़्वाब की दुनिया में है कहीं खो चुका,
तन्हा दूर जाने किस आस में निकलती है ज़िन्दगी,
वीरां राहों में साया के सिवा कोई संग नहीं चलता,
नग्न - सत्य के परिधानों में तब संवरती है ज़िन्दगी,
भष्म की ढेर में, न जाने कौन मेरा जिस्म तलाशे है,
जितना कुरेदो वजूद को उतना बिखरती है ज़िन्दगी,
- - शांतनु सान्याल
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