दो समानांतर पटरियां सुदूर पहाड़ियों के मध्य
जहां आपस में मिलती नज़र आती हैं, बस
वहीं तक वास्तविकता रहती है जीवित,
मध्यांतर में जो बिखरी हुई है चाँदनी
ले जाती है ज़िन्दगी को मिलन
बिंदु की स्वप्निल कंदराओं
में, मध्य रात में होती हैं
जहां दिव्य शक्तियां
अवतरित, बस
वहीं तक वास्तविकता रहती है जीवित । एक
अदृश्य परिपूरक समीकरण बांधे रखता
है हमें अंतिम प्रहर की उजास तक,
देह से उतर जाते हैं सभी मान
अभिमान के खोल, जीवन
तब देख पाता है मुक्ति
पथ का पूर्वाभास,
निर्मोह हृदय
करना
चाहता है संचित अभिलाष को दोनों हाथों
से वितरित, बस वहीं तक वास्तविकता
रहती है जीवित ।
- - शांतनु सान्याल