20 जुलाई, 2024

उजास - -

दो समानांतर पटरियां सुदूर पहाड़ियों के मध्य

जहां आपस में मिलती नज़र आती हैं, बस

वहीं तक वास्तविकता रहती है जीवित,

मध्यांतर में जो बिखरी हुई है चाँदनी

ले जाती है ज़िन्दगी को मिलन 

बिंदु की स्वप्निल कंदराओं

में, मध्य रात में होती हैं

जहां दिव्य शक्तियां

अवतरित, बस

वहीं तक वास्तविकता रहती है जीवित । एक

अदृश्य परिपूरक समीकरण बांधे रखता

है हमें अंतिम प्रहर की उजास तक,

देह से उतर जाते हैं सभी मान

अभिमान के खोल, जीवन

तब देख पाता है मुक्ति

पथ का पूर्वाभास,

निर्मोह हृदय

करना

चाहता है संचित अभिलाष को दोनों हाथों

से वितरित, बस वहीं तक वास्तविकता 

रहती है जीवित ।

- - शांतनु सान्याल

19 जुलाई, 2024

निःसीम गहराई - -

खुले बदन बारिश में, फिर भीगने की चाहत जागे,

नदी पहाड़ का खेल है ज़िन्दगी, उम्र के पीछे भागे,


गहन प्रणय तुम्हारा बना जाता है मुझे अश्वत्थ वृक्ष,

देह प्राण में बंध चले हैं अदृश्य मोह के रेशमी धागे,


अनगिनत सिंधु के पार है वो युगान्तर से प्रतिक्षारत,

छाया की तरह चलता है जो कभी पीछे कभी आगे,


ख़ुद को उजाड़ कर चाहा फिर भी थाह रहा अज्ञात,

निःसीम गहराई, उम्र से कहीं अधिक मुहोब्बत मांगे,

- - शांतनु सान्याल

14 जुलाई, 2024

ख़ाली हाथ - -

वक़्त का घूमता आईना सभी चेहरों को याद 

नहीं रखता, सुदूर पहाड़ियों में उठ रहा है

धुआं या बादलों की है चहलक़दमी,

दूरबीनों से हर एक सत्य नहीं

दिखता, हर एक मोड़ पर

हैं लिखे हुए गंतव्य के

ठिकाने, ताहम जिस 

की तलाश है उस

का पता नहीं

मिलता,

अभिलाष के बीजों को बोया किए बड़ी उम्मीदों 

के साथ, हर एक बीज लेकिन अंकुरित हो 

कर नहीं उभरता, अल्पायु होते हैं हर्ष के 

पल, किसे ख़बर कब जाएं बिखर,

शिशिर बिंदु कमल पात पर

ज़्यादा देर नहीं ठहरता,

ज़रुरी नहीं उपासना

में हो कमी, बहुत

कुछ चाहता

है दिल,

एक 

ही जीवन में लेकिन बहुत कुछ नहीं मिलता, 

वक़्त का घूमता आईना सभी चेहरों को 

याद नहीं रखता ।

- - शांतनु सान्याल





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