कितने दिनों के बाद ख़ुद से मुलाक़ात हुई,
उम्र तो बीत गई यूँ दरख़्तों की देखभाल में
आख़री ढलान पे जा कहीं परछाई साथ हुई,
किसे याद रहता है बचपन की नादानियां,
ख़्वाबों के सफ़र में यूँ तमाम मेरी रात हुई,
हर कोई था बेबश हर कोई जां छुड़ाता सा,
रात ढलते ज़िन्दगी, तवायफ़ी जज़्बात हुई,
तुम भी चाहो तो आख़री ठहाका लगा जाओ,
बहुत दिनों बाद शहर में आज बरसात हुई,
* *
- शांतनु सान्याल
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