बहोत मुश्किल है ज़िन्दगी में,
मन माफ़िक़ चीज़ का
मय्यसर होना,
ज़मीं ओ
आसमां उम्र भर मिलते नहीं,
फिर भी, इक अहसास
रखती है ज़िंदा
उफ़क़ की
लकीर
को, कि तू ख़्वाब ही सही फिर
भी है, इक ख़ूबसूरत वजह !
ज़िन्दगी जीने के लिए,
लहूलुहान है जिस्म
मेरा, तो क्या
हुआ,
रूह की कोई इंतहा नहीं कि -
डूबती सांसों को भी होती
है आख़री लम्हे
तक, उभरते
किनारों
की ख़्वाहिश, ये दीगर बात है
कि फ़रेब ए क़िस्मत
मेहरबां न हो !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
http://media-cache-ak0.pinimg.com/736x/22/7e/0c/227e0c0295d65ffce8782a1e3a7f574b.jpg
मन माफ़िक़ चीज़ का
मय्यसर होना,
ज़मीं ओ
आसमां उम्र भर मिलते नहीं,
फिर भी, इक अहसास
रखती है ज़िंदा
उफ़क़ की
लकीर
को, कि तू ख़्वाब ही सही फिर
भी है, इक ख़ूबसूरत वजह !
ज़िन्दगी जीने के लिए,
लहूलुहान है जिस्म
मेरा, तो क्या
हुआ,
रूह की कोई इंतहा नहीं कि -
डूबती सांसों को भी होती
है आख़री लम्हे
तक, उभरते
किनारों
की ख़्वाहिश, ये दीगर बात है
कि फ़रेब ए क़िस्मत
मेहरबां न हो !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
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