उड़ते बादलों का साया है वो कोई, -
या मृगजल का साकार होना,
न कोई आहट, न ही
निशानदेही,
बहोत
ही ख़तरनाक था, उस इक नज़र का
यूँ ख़मोश, जिगर के पार होना !
वो तमाम जादू - टोने, या थे
निगाहों के खिलौने !
कहना है बहोत
मुश्किल,
किसी हसीं क़ातिल का यूँ खुल के -
तलबगार होना, न जाने क्या
राज़ ए कशिश है, उसके
नाज़ुक ओंठों के
आसपास,
क्यूँ न चाहे दिल, क़ुर्बान उसपे, एक
नहीं हज़ार बार होना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
spilling emotion
या मृगजल का साकार होना,
न कोई आहट, न ही
निशानदेही,
बहोत
ही ख़तरनाक था, उस इक नज़र का
यूँ ख़मोश, जिगर के पार होना !
वो तमाम जादू - टोने, या थे
निगाहों के खिलौने !
कहना है बहोत
मुश्किल,
किसी हसीं क़ातिल का यूँ खुल के -
तलबगार होना, न जाने क्या
राज़ ए कशिश है, उसके
नाज़ुक ओंठों के
आसपास,
क्यूँ न चाहे दिल, क़ुर्बान उसपे, एक
नहीं हज़ार बार होना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
spilling emotion
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें