03 दिसंबर, 2025

द्विप्रहर यामिनी - -

रात्रि का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन,

दोनों पहलुओं में है शून्यता, पंखुड़ियों
में है संचित, पूर्वाद्ध की गोपन
कथा, पलक बंद आँखों
में है समाहित सप्त -
रंगी सपन, रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । उस
मोड़ के आगे हैं कहीं गुलमोहरी रास्ते,
कुछ घुमावदार उतार चढ़ाव, एक
छुअन जो हिमायित देह को
ले जाए आग्नेय पथ की
ओर, पिघलता जाए
हिमनदी की तरह
स्तंभित तन
मन, रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम
में एक
अनंत दहन, रात्रि का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन ।
- - शांतनु सान्याल

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