06 अगस्त, 2025

अदृश्य हरकारा - -

शैल हो या अस्थि हर एक चीज़ का क्षरण है

निश्चित, किनारा जानता है नदी का रौद्र
स्वभाव, लहरों का आतंक फिर भी
वो बेफ़िक्र सा बना रहता है उसे
ज्ञात है कुछ पाने के लिए
कुछ खोना है लाज़िम,
सजल अनुभूति
हमें बहुधा
बना
जाती है मूक बधिर व अंध, वक्षःस्थल की
व्यथा नहीं लगती तब अप्रत्याशित,
शैल हो या अस्थि हर एक चीज़
का क्षरण है निश्चित । ये जान
कर भी हम दौड़े जाते
हैं कि क्षितिज
रेखा का
कोई
अस्तित्व नहीं, आँख लगते ही जगा जाता
है अदृश्य हरकारा, मोह के बीज पुनः
लालायित हो चले हैं अंकुरित
होने के लिए, हम छूना
चाहते हैं उस क्षण
आसमान सारा,
इसी एक
बिंदु
पर आ कर पुनः जी उठते हैं हम किंचित,
शैल हो या अस्थि हर एक चीज़ का
क्षरण है निश्चित ।
- - शांतनु सान्याल 

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