25 जनवरी, 2025

ज़िन्दगी - -

न जाने कितने बिंदुओं पर भटकती है ज़िन्दगी,

शमा की तरह लम्हा लम्हा सिहरती है ज़िन्दगी,

लौट चुके हैं, सभी चाहने वाले अपने अपने घर,
किसी की याद में भला कहाँ ठहरती है ज़िन्दगी,

मंदिर ओ नदी के दरमियां फ़ासला कुछ भी नही,
जलस्पर्श के लिए मुश्किल से उतरती है ज़िन्दगी,

सारा शहर ख़्वाब की दुनिया में है कहीं खो चुका,
तन्हा दूर जाने किस आस में निकलती है ज़िन्दगी,

वीरां राहों में साया के सिवा कोई संग नहीं चलता,
नग्न - सत्य के परिधानों में तब संवरती है ज़िन्दगी,

भष्म की ढेर में, न जाने कौन मेरा जिस्म तलाशे है,
जितना कुरेदो वजूद को उतना बिखरती है ज़िन्दगी,
- - शांतनु सान्याल

22 जनवरी, 2025

उपशम - -

वेदना और मस्तिष्क के मध्य समझौता

ही जीवन का खूबसूरत उपशम है,
जो नयन कोण में थम कर
जीने का राज़ कह जाए
वही बूंद असली
शबनम है,
वो टूट कर बिखर गया किसी आदिम
सितारे की तरह उसका ग़म है
बेमानी,जो दिखाई ही न
दे उसकी तलाश में
है ये सारी दुनिया,
जबकि मुझे
चाहने
वाला
मेरे दिल की गहराई में हरदम है, वो
डूब कर छूना चाहे मुक्ति द्वार के
कपाट, मैं ख़ुद से उभर कर
चाहता हूँ उसे छूना,
आसपास यूँ तो
कोई नहीं,
फिर
भी न जाने क्यूं लगता है, कोई तो यहां
हमक़दम है, हमारे दरमियान कुछ
भी नहीं गोपनीय, देह प्राण
सब कुछ है एकाकार,
एक अखण्ड
दहन में
जल
रहे हैं हम सभी, और हाथ तुम्हारे चिर
शांति का मरहम है, जो नयन
कोण में थम कर जीने
का राज़ कह जाए
वही बूंद असली
शबनम है ।।
- - शांतनु सान्याल

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