23 जनवरी, 2018

अदाकारी - -

काश, सजल अहसासों का - -
कोई मरूद्वीप होता
अंतरतम के अंदर,
तो शायद
भटकती हुई सांसों को मिल
जाती कुछ पलों की
राहत। वही
 दालान,
वही दर ओ दीवार, वही आईने
की नामुराद हसरत,
परछाइयों के
शहर में
ख़त्म कहाँ होती हैं चाँदनी रात
की चाहत। पतझड़ की है
अपनी ही मजबूरियां,
क़ुदरत से लड़ना
आसां नहीं,
हर कोई है
अपनी
अपनी जगह इक अदाकार - - -
मुक़्क़दर के मातहत।

* *
- शांतनु सान्याल 

11 जनवरी, 2018

अतृप्त प्यास - -

 कुछ अँधेरे उजालों के टुकड़े, कुछ
बूंद आसमानी शायद रात
ढले छलके थे मेरे
नयन कोरों
से, या
आख़री पहर तुमने छुआ था मुझे
निशि पुष्प की तरह निःशब्द
मख़मली अहसास लिए।
कोई रेशमी सिहरन
जागी थी श्वास
तंतुओं में,
या
कदाचित, ज़िन्दगी लौट आई थी -
पुनर्जागरण की प्यास लिए।

* *
- शांतनु सान्याल










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