नाकामियों से ही, मैंने सीखा है -
ज़िन्दगी जीना, चैन कहाँ
मिलता है हार जाने
के बाद, कि इक
बेक़रारी
मुझको रुकने नहीं देती शिकस्त
बिंदु पर, जहाँ रुकते हैं मेरे
क़दम, वही से मेरा
आग़ाज़ ए
सफ़र
होता है, ये तै नहीं कि आसमानी
लकीर ही है मेरी मंज़िल,
सुना है, कहकशाँ से
भी आगे है कोई
ख़ूबसूरत
जहां !
चाहे जितनी भी बुलंद क्यूँ न हो
ज़माने की तंज़िया हंसी !
हर शै की उम्र है
मुक़र्रर
कौन किस पल बिखर जाए - - -
किसे यहाँ ख़बर - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by Karen Margulis
ज़िन्दगी जीना, चैन कहाँ
मिलता है हार जाने
के बाद, कि इक
बेक़रारी
मुझको रुकने नहीं देती शिकस्त
बिंदु पर, जहाँ रुकते हैं मेरे
क़दम, वही से मेरा
आग़ाज़ ए
सफ़र
होता है, ये तै नहीं कि आसमानी
लकीर ही है मेरी मंज़िल,
सुना है, कहकशाँ से
भी आगे है कोई
ख़ूबसूरत
जहां !
चाहे जितनी भी बुलंद क्यूँ न हो
ज़माने की तंज़िया हंसी !
हर शै की उम्र है
मुक़र्रर
कौन किस पल बिखर जाए - - -
किसे यहाँ ख़बर - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by Karen Margulis
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें