सुबह फूलों की बहार वो भीगा रविवार
सहसा पुराने दर्पण का टूट जाना
हाथों से फिसल ज़मीं पर बिखर जाना
कुहरा मय आकाश, धूसर बादलों के दाग़
हस्त चिन्हों की तरह स्थूल
वाष्प कणिकाएं , खिडकियों के शीशे
आईने के टुकड़ों का संग्रह
आईने के टुकड़ों का संग्रह
फूलों के गमले, कुछ अनकही बातें
पुराने ख़तों का उड़ उड़ बिखर जाना
अर्ध पढ़ी किताब के पृष्ठों का आन्दोलन
अर्ध पढ़ी किताब के पृष्ठों का आन्दोलन
दरवाज़े पर दस्तक का आभास
सोंधी ख़ुश्बू संभवतः वृष्टि आगमन
एक शिशु हाथों में लिए नन्हा सा फूल
कहे आओ मेरे साथ बाहर उड़तीं हैं
कितनी रंग बिरंगी तितलियाँ
आँखों में जीने की उम्मीद
बादलों का ज़ोरों से बिखर जाना.
--- शांतनु सान्याल
--- शांतनु सान्याल
बहुत खूबसूरत नज़्म ..
जवाब देंहटाएंthanks sangeeta di - regards
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