28 अगस्त, 2015

जाते जाते - -

कुछ लम्हात यूँ ही और
नज़दीक रहते, कुछ
और ज़रा जीने
की चाहत
बढ़ा
जाते। ताउम्र जिस से
न मिले पल भर
की राहत,
काश,
कोई लाइलाज मर्ज़ 
लगा जाते। किस
मोड़ पे फिर
रुकेगी
फ़स्ले बहार, काश, जाते
जाते अपना पता
बता जाते।
तुम्हारे
जाते ही घिर आए
बादलों के साए,
मन - मंदिर
में कोई
साँझ दीया जला जाते।
कुछ अनमनी सी हैं
रातरानी की
डालियाँ,
हमेशा
की तरह गंधकोशों में
ख़ुश्बू बसा
जाते। 

* *
- शांतनु सान्याल
  

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