किसी की चाहतों में ख़ुद को मिटा देना
नहीं आसां, बड़ी सहजता से उसने
तोड़ा था नाज़ुक रिश्ते, लेकिन
न जाने क्यूँ वो शख़्स रहा
ताउम्र परेशां। बिखरे
हुए ख़्वाबों में
कहीं न
कहीं
होता है सुबह का ठिकाना, आज की
रात चाहे गुज़री हो दहकते हुए
रास्तों से, ग़र मुमकिन
हो कभी, मुंतज़िर
आँखों में
लौट आना। सितारों का उभरना नहीं
छूटता उजाले और अँधेरे के
दरमियां, इक हलकी
सी लकीर होती
उम्मीद की
हमेशा,
चाहे बेशुमार हों ज़िन्दगी में कमियां।
* *
- शांतनु सान्याल
नहीं आसां, बड़ी सहजता से उसने
तोड़ा था नाज़ुक रिश्ते, लेकिन
न जाने क्यूँ वो शख़्स रहा
ताउम्र परेशां। बिखरे
हुए ख़्वाबों में
कहीं न
कहीं
होता है सुबह का ठिकाना, आज की
रात चाहे गुज़री हो दहकते हुए
रास्तों से, ग़र मुमकिन
हो कभी, मुंतज़िर
आँखों में
लौट आना। सितारों का उभरना नहीं
छूटता उजाले और अँधेरे के
दरमियां, इक हलकी
सी लकीर होती
उम्मीद की
हमेशा,
चाहे बेशुमार हों ज़िन्दगी में कमियां।
* *
- शांतनु सान्याल