27 जनवरी, 2015

लौट भी आओ तुम - -

अनाहूत, किसी सांध्य वर्षा की तरह,
कभी किसी पल बरस तो जाओ तुम,

रस्तों के जाल या वही मील के पत्थर
परिचित हैं सभी लौट भी आओ तुम,

सहज नहीं जीना अपरिग्रहित हो कर,
स्व के सिवा अन्य को अपनाओ तुम,

उस अज्ञातवास में कहाँ है निस्तार !
यूँ ही भीड़ का हिस्सा बन जाओ तुम,

मधुमास हो या तपती ग्रीष्म दुपहरी
अंतरतम में चन्दन तरु उगाओ तुम।

* *
- शांतनु सान्याल



 
 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Jacqueline Gnott's painting

02 जनवरी, 2015

आग़ाज़ ए कायनात - -

दर दायरा बाग़, बाड़ों की कमी नहीं
होती, फिर भी कौन रोक पाए
है बाद मअतर, कि हर
एक सरहद को
पार कर
जाता है मुहोब्बत में, भीगा हुआ -
अहसास, तुम्हारी निगाहों
में कहीं हमने देखी
है ज़िन्दगी
की असल परछाई, अब कोई ग़म -
नहीं कि ज़माना हो जाए
इंतहाई मौसम ए
गरमा,
ये रास्ता है सर ज़मीं ए रूह की, जो
बसती है सतह आतिशफ़िशां
पे, आग़ाज़ ए कायनात
से कहीं पहले !

* *
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Watercolor_Paintings_by_Darryl_Trott

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past