24 सितंबर, 2015

गिरह पुराने - -

न खोल गिरह पुराने
कुछ दर्द अनजाने,
रहने दे यूँ ही
गुमशुदा
अनकहे अफ़साने। उन
लोगों की थी शायद
अपनी मजबूरी
कभी गले
से लगाया, कभी लगे
ठुकराने। बेशक
हर कोई
यहाँ,
है अपनी धुरी से बंधा,
इक ज़रा सी बात
पर बनते हैं
हज़ार
 बहाने। न मैं नीलकंठ
बन सका, और न
तू  ही मीरा
चन्दन
और भुजंग हैं यहाँ मित्र
बहुत पुराने। न खोल
गिरह पुराने कुछ
दर्द अनजाने।

* *
- शांतनु सान्याल

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