26 मई, 2015

चलो साँझा कर लें - -

ये अंधेरे - उजालों के हैं खेल सारे,
कभी चाँद रात लगे फीकी -
फीकी और कभी पहलू
में उतरें सितारे।
अजीब सी
है ये उतरती दरिया किस ओर जा
मुड़े कहना नहीं आसां, कभी
तुम हो इस तरफ़, और
कभी हम दूर उस
किनारे।
यूँ ही कश्मकश में न गुज़र जाए -
ये ज़िन्दगी, चलो साँझा कर
लें कुछ दर्द हमारे कुछ
ग़म तुम्हारे।
वक़्त से
जीतना है बहोत मुश्किल, तक़दीर
से शिकवा लाज़िम नहीं,चलता
रहे यूँ ही आँख - मिचौनी
कभी यूँ ही जीता
दो मुझ को भी
झूठमूठ
ही, बचपन वाले वही दूधभात के
सहारे। ये अंधेरे - उजालों
के हैं खेल सारे,
कभी चाँद
रात लगे फीकी - फीकी और कभी
पहलू में उतरें सितारे।

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/


23 मई, 2015

अधूरापन - -

अधूरापन है ज़िन्दगी की हक़ीक़त
यहाँ कोई शख़्स कामिल नहीं,
यूँ तो आज़माइशों की
अपनी अलग है
ख़ूबसूरती,
तुझ से मिल कर दिल को बहोत ही
सुकून मिलता है, फिर भी ये
दोस्त, तू मेरी मंज़िल
नहीं, बारहा
उठती
गिरती हैं जज़्बात की लहरें कुछ -
दूर तक जातीं भी ज़रूर हैं,
जिसे सोचते रहे हम
इक आख़री
किनारा,
क़रीब पहुँचने पे पता चला कि वो
है महज इक तैरता जज़ीरा,
समंदर का कोई
साहिल नहीं।

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

19 मई, 2015

अपनापन - -

नाम - निहाद थे वो तमाम दावे उनके,
कोई किसी के लिए नहीं है मुंतज़िर
यहाँ, जो छूट गए भीड़ में कहीं,
रफ़्ता - रफ़्ता वक़्त उन्हें
इक दिन भूला
देता है।
न बढ़ा ख़ुलूस ए शिद्दत इस क़दर मेरे
दोस्त, कि निगाहों में बेवक़्त ही
अब्र छा जाएँ, ये अपनापन
है बहोत जानलेवा,
हँसते - हँसते
इक दिन
बहोत रूला देता है। जो छूट गए भीड़
में कहीं, रफ़्ता - रफ़्ता वक़्त
उन्हें इक दिन भूला
देता है।

* *
- शांतनु सान्याल
 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

15 मई, 2015

अनबुझ प्यास - -

कहाँ ज़िन्दगी में, हर ख़्वाब
को हक़ीक़त की ज़मीं
मिलती है,
कोई भी नहीं मुकम्मल इस
जहां में, कुछ न कुछ
तो कमी
रहती है,कभी भरे बरसात में
भी रहती है, सदियों
की अनबुझी
प्यास,कभी इक बूँद के लिए
सुलगती साँस थमी
रहती  है,
न बढ़ा ख़्वाहिशों की फ़ेहरिश्त
इस तरह कि ज़िन्दगी ही
कम पड़ जाए,
जिस्म तो है महज मामला ए
ख़ाक  लेकिन न जाने
क्यूँ रूह -
ए - तिश्नगी बनी रहती है, - -

* *
- शांतनु सान्याल
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art by alisa wilcher

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