22 नवंबर, 2014

मन्नतों की दुनिया - -

फिर तेरी निगाहों में उतर चले हैं कुछ
अक्स आसमानी, या आने को
है पुरअमन ज़िन्दगी में
तूफ़ान सा कोई !
इक ख़ौफ़
सा रहता है दिल के कोने में कहीं, न
बदल जाए कहीं तू राह अपना,
मौसमी हवाओं के हमराह,
न लूट ले सरे आम
कोई, मन्नतों
की दुनिया,
फ़रेब ए दस्तक दे के, बड़ी मुश्किलों
से हम ने माँगा है ख़ुदा से तुझ को।

* *
- शांतनु सान्याल


 

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Brita Seinfeld art

14 नवंबर, 2014

कुछ भी नहीं निःशर्त - -

,
इस दुनिया में कुछ भी नहीं
निःशर्त, हर कोई चाहे
किसी न किसी
रूप में
प्रतिदान,  कुछ भी नहीं यहाँ - -
शाश्वत, उस पल मुझे
उसकी बातें लगी
थीं बहुत ही
विषाक्त,
निर्मम समय और स्व - छाया
ने समझाया, मुझे जीवन
का कड़वा सच,
ढलती उम्र
के साथ
सभी रिश्ते नाते, धीरे धीरे खो -
जाते हैं कहीं, ठीक, जाड़े
की धूप की तरह,
ज़रा देर
के लिए, औपचारिकता निभाते
हुए छू जाते हैं, ईशान -
कोणीय गलियारा,
केवल कुछ
पलों के लिए इक गर्म अहसास,
साथ रह जाती है लम्बी
ठिठुरन भरी रात
और एक दीर्घ
निःश्वास।

* *
- शांतनु सान्याल 

11 नवंबर, 2014

दर्द गुज़िश्ता - -

बेहतर है न कुरेद बार बार, यूँ
दर्द गुज़िश्ता, तमाम
रात सुलगता
रहा नीला
आसमान, और गिरे चश्म ए
ओस आहिस्ता आहिस्ता,
न जाने वो ख़्वाब था,
या साहब नफ़स
मेरा, नादीद
हो कर
भी कर गया मुझे यूँ वाबस्ता, -
जब होश लौटे, उठ चुका
था नूर शामियाना
दूर तक थी
ख़मोशी
और इक अंतहीन लम्बा सा
रस्ता, बेहतर है न कुरेद
बार बार, यूँ दर्द
गुज़िश्ता,

* *
-  शांतनु सान्याल 


 

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Lorraine Christie Art 2

09 नवंबर, 2014

पोशीदा नज़्म कोई - -

कभी कभी, यूँ ही बेवजह, किसी
सुनसान से, पहाड़ी स्टेशन
के प्लेटफ़ार्म पे, रहता
है खड़ा मेरा वजूद,
कुछ अनमना,
तन्हा सा !
आधी रात की, वो आख़री रेल - 
जब गुज़रती है, धड़धड़ाती
हुई, पुरअसरार वादियों
की जानिब, दूर दूर
तक फैली
हुई चाँदनी में करती है मेरी रूह  
गुमशुदा नज़्म की तलाश, 

किसी जंगली नदी के 
किनारे, महुवा या 
खैर के तने
पे कहीं
जहाँ कभी मिलकर हमने उकेरा
था इक दिल का निशान, और
लिखी थी ख़ूबसूरत सी,
पोशीदा नज़्म कोई
ला उन्वान !

* *
- शांतनु सान्याल 


 
 

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Still Life After Shirley Trevena

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