06 मई, 2014

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता - -

कहाँ हर चीज़ है मय्यसर बर अक्स 
ख़्वाहिश के, कुछ न कुछ 
समझौता ज़रूरी है 
ज़िन्दगी में,
देखा है 
कई बार ख़्वाबों को टूट कर दोबारा 
उभरते हुए, वो नज़र अंदाज़ 
नज़रिया तुम्हारा, 
मज़ाक़ था 
या - - 
हक़ीक़ी, जो भी हो, कोई फ़र्क़ नहीं 
पड़ता इश्क़ ओ दीवानगी 
में, रस्म ए दुनिया 
की हैं अपनी 
ही 
मजबूरियां, निभाएँ वो जिस तरह 
से चाहें, मुद्दतों से हमने 
छोड़ दिया है सब 
कुछ  यूँ ही 
किसी 
के लिए, मरना जीना है बेमानी - - 
अनबुझ इस तिश्नगी में, 
कुछ न 
कुछ समझौता ज़रूरी है ज़िन्दगी में,

* * 
- शांतनु सान्याल 



http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by willie fulton

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