31 मई, 2014

अर्ज़ ख़ास - -

इक न इक दिन मैं उड़ जाऊँगा, न रख 
मुझे अपने क़फ़स ए दिल में,
बुलाती हैं मुझे ख़ामोश 
वादियाँ, देती हैं 
सदा सहरा 
की 
तन्हाइयाँ, न जाने क्या छुपा है उस ना 
शनास मंज़िल में, भटकती हैं 
निगाहें, रूह भी है बेताब 
सी, कि मेरा वजूद 
है, गोया इक 
ग़ज़ाल 
प्यासी, भटके है मुसलसल ये ज़िन्दगी 
नमकीन साहिल में, न रख मुझे 
बंद, यूँ ख़ूबसूरत शीशी में,
कि मैं हूँ इक ख़ुश्बू 
ए वहशी, खो 
जाऊँगा 
न जाने कब घुटन के जंगल में, न रख 
मुझे अपने क़फ़स ए दिल में - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

क़फ़स ए दिल - दिल के पिंजरे में
 ना शनास  - अजनबी  
ग़ज़ाल - हिरण 
साहिल - किनारा 
वहशी - जंगली 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
 One day I'll Fly Away - by wallis 

30 मई, 2014

मीलों लम्बी तन्हाई - -

असंकलित ही रहा सारा जीवन,
हालाकि उसने संग्रह करना 
चाहा बहोत कुछ, दर -
असल, नियति 
से अधिक 
पाना 
व्यतिक्रम से ज्यादा कुछ भी - -  
नहीं, कब उठ जाए सभी 
रंगीन ख़ेमे कहना 
है बहोत 
मुश्किल,फिर वही ख़ाली बर्तन !
अध झुकी सुराही, कहाँ 
मुमकिन है, स्थायी 
ठौर मेरे हमराही,
जहाँ थी 
आबाद कभी, इक मुश्त ख़्वाबों 
की ज़मी, आँख खुलते 
ही देखा बियाबां
के सिवा 
कुछ भी नहीं, और मीलों लम्बी 
थी तन्हाई  !

* * 
- शांतनु सान्याल 
  
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
http://www.jocastilloart.com/Resources/2011/11002ollas_pots.jpg

29 मई, 2014

बहोत नज़दीक - -

वो दर्द ही था, जो रहा उम्र भर 
बावफ़ा, बहोत नज़दीक 
मेरे, वरना कौन 
साथ देता 
है यूँ 
ग़म की अँधेरी रातों में, चेहरे 
सभी लगे यकसां, जो भी 
मिले, ज़िन्दगी के 
सफ़र में, 
वही 
छुपी हुई घातें, वही मरमोज़  
ए नज़र थी, उनकी बातों 
में, कहते हैं कि यक़ीं, 
पत्थर में भी, 
अक्स ए 
ख़ुदा 
तस्लीम करे, यही वजह थी 
कि हमने सब कुछ 
निसार किया 
उनकी 
छुपी हुई ख़ूबसूरत घातों में - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
floating art

28 मई, 2014

नव क्षितिज की चाहत - -

उगते सूरज के साथ जब जागे निसर्ग,
कण कण में जीवन दिखाई दे
स्पष्ट, काल चक्र के
साथ हर कोई
श्रृंखलित,
कोई
कितना भी चाहे रोकना, कहाँ रुकते -
हैं मौसमी बयार, सृष्टि का
विधान है परिवर्तन,
सदैव अनवरत,
कभी झरे
पल्लव
और कभी डालियों में झूलते हैं कुसुम
वृन्त, कभी प्लावित मरुभूमि
के रेतीले पहाड़ और
कभी जीवन
वृष्टि -
छाया में परित्यक्त, फिर भी हर हाल -
में जीवन, उत्क्रांति की ओर
अग्रसर, निरंतर नव
क्षितिज की
चाहत।

* *
- शांतनु सान्याल

25 मई, 2014

ज़िन्दगी - -

अपठित पृष्ठों में कहीं मयूर पंख 
की तरह, बाट जोहती सी 
ज़िन्दगी, किसी
रुमाल के 
कोने 
में रेशमी धागों के मध्य, अदृश्य 
महकती सी ज़िन्दगी, न 
जाने कितने रंग 
समेटे है ये 
जीवन, 
कभी ग्रीष्मकालीन अरण्य नदी -
की तरह, अपने किनारों को 
समेटती ज़िन्दगी, कभी 
सीने में ओस बूंद 
लिए, कांटों 
से उभरती हुई सी ज़िन्दगी, अपठित 
पृष्ठों में कहीं मयूर पंख की 
तरह, बाट जोहती सी 
ज़िन्दगी - - 

* * 
-  शांतनु सान्याल  
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
valentine flowers card

24 मई, 2014

पिघलता रहा आकाश - -

बहोत फीके फीके से लगे झूलते 
सुनहरे अमलतास, न जाने 
कैसा दर्द दे गया कोई,
गहराता रहा 
हर पल 
जीवन में एकाकीपन, वैसे तो -
जन अरण्य था यथावत
मेरे आसपास, 
वीथिका  
के दोनों तरफ, वन्य कुसुमों से 
लदी डालियों से छलक 
रहे थे मदिर गंध,
न जाने 
फिर भी बहोत नीरस था तुम - 
बिन मधुमास, तृष्णा 
मेरी रही अनबुझ,
अपनी जगह,
मरू प्रांतर 
की तरह, कहने को बारम्बार -
पिघलता रहा आकाश !

* * 
- शांतनु सान्याल 




http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Autom-Acrylic-on-Canvas-Painting-by-Bhawana-Choudhary

21 मई, 2014

वादी ए फ़रेब - -

नयापन कुछ भी न था, उसने फिर
दोहराया है, उम्र भर साथ
जीने मरने की बात,
कैसे कोई उसे
समझाए,
कि
मुमकिन नहीं रिश्तों का यूँ जावेदां
होना, फूल खिलते हैं इक दिन
न इक दिन बिखरने के
लिए, दिल भी
मिलते हैं
कहीं न कहीं टूटने के लिए, बहोत
मुश्किल है ख़्वाबों का यूँ
हक़ीक़ी गुलिस्तां
होना, उसकी
बातों में
है
बेशक, उम्मीद से लम्बे ज़िन्दगी के
रास्ते, कैसे कोई उसे बताए, कि
ज़रुरी नहीँ दूर लहराती
वादी ए फ़रेब का
नख़्लिसतां
होना !

* *
- शांतनु सान्याल

जावेदां - शाश्वत
नख़्लिसतां - मरूद्यान
वादी ए फ़रेब - आडम्बर की घाटी
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by cathy quiel

18 मई, 2014

प्रवासी आत्म - काया - -

मृगजलीय पथ से दूर, देह जब पाए
अप्रत्याशित अदृश्य छाया, तब
दर्पण से निकल आए
अपने आप स्व
प्रतिच्छाया,
जन -
शून्य उस मरू पथ का अपना ही है
सौंदर्य, समस्त अभिलाषाएं
जब विलुप्ति की ओर,
न पृथ्वी, न भव्य
आकाशगंगा,
तब
जीवन हो मुक्त माया, न कोई जहाँ
अपना या पराया, उस परम
सुख में है अन्तर्निहित
जीवन सारांश,
हर मुख
में दिखाई दे परितोष गहन, प्रत्येक
नयन में हो उद्भासित पवित्र
बिम्ब, तब कहीं जा
कर करे चिर
शयन,
प्रवासी आत्म - काया  - -

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Artist - NORA KASTEN

17 मई, 2014

अंततः - -

अंततः तमाम रास्ते पहुँचते हैं वहीँ 
जहाँ से होता है जीवन का 
उद्भव, अंकुरण और 
बिखराव के 
मध्य, 
कहीं न कहीं हम जुड़े रहे सुरभित -
समीर के संग, अदृश्य प्रणय 
बंध में एकाकार, वो 
सूत्रधार कोई 
और न 
था नियति के सिवाय, जो रहा हर 
पल नेपथ्य में मूक दर्शक बन, 
समय का अपना ही है 
आकलन, बहुत 
कठिन है 
हल करना, धुप - छाँव का ये गहन 
समीकरण - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
the most beautiful painting ever

15 मई, 2014

ये नहीं आख़री मंज़िल - -

ये नहीं आख़री मंज़िल, समन्दर के 
उस पार भी कुछ जुगनुओं 
की मानिंद, चमकते 
किनारे हैं 
मुंतज़िर, चलो फिर इक बार चलें -
कहीं दूर, किसी उम्मीद की 
साहिल में, उतार भी 
दो जिस्म ओ 
जां से ये 
लिबास क़दीमी, उभरने को हैं कुछ 
बेताब से आसमानी पैरहन !
मँझधार में आ कर 
न देख छूटता 
किनारा,
कुछ पाने के लिए ज़िन्दगी में, बहुत 
कुछ, खोना भी है लाज़िम, 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Flowers-in-a-Vase1-artist-Paul-Cezanne

13 मई, 2014

सराब ए ख़्वाहिश - -

तलाश करते रहे ख़ुशियाँ न जाने -
कहाँ कहाँ, अंदरुनी अँधेरा रहा
बरक़रार हमेशा की
तरह, कभी
ज़मीं
की तरफ़, कभी आसमां की जानिब,
भटकती रही ज़िन्दगी किसी
प्यासी रूह की तरह,
इक पोशीदा
जुनूं
ही था मेरे वजूद में छाया हुआ, न -
मिल पाया सुकून मुझ को
कहीं दो पल, जबकि
हर चीज़ थी दर
मुक़ाबिल
मेरे
बाहें फैलाए, दरअसल ये सराब ए
ख़्वाहिश थी जिसने, उम्र भर
मुझ को इक मुश्त
सांस लेने
न दिया,
लाख चाहा मगर पुरअमन मुझ को
उसने जीने न दिया।

* *
- शांतनु सान्याल 

पुरअमन - शांतिपूर्ण
इक मुश्त - मुट्ठी भर
पोशीदा जुनूं - अदृश्य पागलपन
सराब ए ख़्वाहिश - चाहत की मृगतृष्णा
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
beauty of roses

12 मई, 2014

लकीर ए फ़रेब - -

ज़िन्दगी में कई बार यूँ भी होता है,
जिन्हें हम ग़ैर समझते हैं 
वही शख़्स दिल के 
बहुत नज़दीक 
होता है, 
दरअसल जौहरी की नज़र चाहिए, 
रौशनाई की असलियत 
जानने के लिए, इक 
नज़र में पीतल
भी, सोने 
के बहुत क़रीब होता है, उनकी - - 
मुस्कान है बहुत पुरअसरार,
हक़ीक़त जानना नहीं 
आसां, कि दिल 
में छुपा 
है क्या, असल में लकीर ए फ़रेब 
बहुत बारीक होता है, जिन्हें
हम ग़ैर समझते हैं 
वही शख़्स 
दिल के 
बहुत नज़दीक होता है - - - - - - - !

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
beyond the dream

10 मई, 2014

बहोत मुश्किल है - -

रहने दे मुझे गुमशुदा ख़्वाबों की 
ज़मीं पे, कुछ देर ही सही 
झुलसती रूह को 
राहत ए जां 
मिले, 
हर शख़्स यहाँ मबहम सा लगे,
किस पे यक़ीं करें, चेहरे पे 
चस्प हैं जैसे रंगीन
मुखौटे, ऊपर 
से हैं सभी 
वादी ए गुल, अन्दर से लेकिन -
ख़ारदार रेगिस्ताँ मिले,
बहोत मुश्किल 
है संदली 
अहसास को छूना, वादी ए सकूं 
की तलाश में, हर इक 
क़दम पे मख़फ़ी 
आतिशफ़िशां 
मिले !

* * 
- शांतनु सान्याल 

अर्थ - 
मबहम - रहस्यमय 
ख़ारदार - कँटीले 
 संदली - चन्दन की तरह 
मख़फ़ी - छुपे हुए 
आतिशफ़िशां - ज्वालामुखी 
वादी ए सकूं - शांत घाटी 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Sweet realization

09 मई, 2014

ज़रूरत से ज़ियादा - -

ख़ूबसूरत ये ज़मीं, उन्मुक्त आस्मां,
हर तरफ़ क़ुदरत की जादूगरी,
पहाड़ों से गिरते झरने,
फ़िज़ाओं में हैं 
फूलों सी 
ताज़गी, हर तरफ़ जश्न ए जिंदगी,
न मोड़ अपनी नज़र ज़रा सी 
कमी पर, हर इक रूह 
प्यासी, हर सांस 
को चाहिए
यहाँ उभरने की आज़ादी, दरअसल 
उम्र से कहीं लम्बी होती हैं 
ये ख़्वाहिशों की 
फ़ेहरिस्त,
और दिल बेचारा हो जाता है दम ब 
दम मजनून ए सहरा !
भटकता है रात 
ओ दिन 
ज़रूरत से ज़ियादा पाने की चाह में,
जबकि सब कुछ रहती है 
अपनी जगह उसी 
के सामने,

* * 
-  शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
wash painting

08 मई, 2014

ख़ूबसूरत पनाह - -

वो सजल अहसास जो तैरती हैं - -
अक्सर निगाहों की सतह 
पर, ग़र तुम्हारे 
दामन की 
पनाह 
पाते, तो शायद मोती हो जाते, वो 
शीत दहन जो सुलगती है 
मद्धम मद्धम, दिल के 
बहोत अन्दर,
काश,
तुम्हारी साँसों की छुअन पाते, तो 
शायद अनन्त ज्योति हो 
जाते, वो अंकुरित 
प्रणय जो 
चाहता 
है परिपूर्ण प्रस्फुटन, जो तुम्हारे - -
चाहत का  प्रतिदान पाते, 
तो शायद दिव्य 
आहुति 
हो जाते,  ग़र तुम्हारे दामन की - -
पनाह पाते, तो शायद 
मोती हो 
जाते, 

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
poetry in aquarelle art

07 मई, 2014

लूका - छुपी का खेल - -

लूका छुपी ही था ग़म ओ ख़ुशी के 
दरमियां, नाहक कोसते 
रहे हम तक़दीर 
को, हर 
एक चीज़ के हैं दो पहलू, रौशनी - 
की दूसरी तरफ़ रहता है 
हमेशा की तरह 
वजूद ए 
अंधेरा, बेवजह पढ़ते रहे हम यूँ -
ही हथेली के तहरीर को, 
क़ुदरत का 
अपना 
ही है दस्तूर, बदलना जिसे नहीं -
आसां, बहोत कोशिश की 
दिलों को जीतने के 
लिए, लेकिन 
नाकाम 
रहे हम हर दफ़ा, समझ न पाए - 
कभी हम पोशीदा उस 
तदबीर को, नाहक
कोसते रहे 
हम 
ताउम्र यूँ ही तक़दीर को - - - - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Lloyd Glover Paintings

06 मई, 2014

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता - -

कहाँ हर चीज़ है मय्यसर बर अक्स 
ख़्वाहिश के, कुछ न कुछ 
समझौता ज़रूरी है 
ज़िन्दगी में,
देखा है 
कई बार ख़्वाबों को टूट कर दोबारा 
उभरते हुए, वो नज़र अंदाज़ 
नज़रिया तुम्हारा, 
मज़ाक़ था 
या - - 
हक़ीक़ी, जो भी हो, कोई फ़र्क़ नहीं 
पड़ता इश्क़ ओ दीवानगी 
में, रस्म ए दुनिया 
की हैं अपनी 
ही 
मजबूरियां, निभाएँ वो जिस तरह 
से चाहें, मुद्दतों से हमने 
छोड़ दिया है सब 
कुछ  यूँ ही 
किसी 
के लिए, मरना जीना है बेमानी - - 
अनबुझ इस तिश्नगी में, 
कुछ न 
कुछ समझौता ज़रूरी है ज़िन्दगी में,

* * 
- शांतनु सान्याल 



http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by willie fulton

05 मई, 2014

भीगे पल - -

वो लम्हात, जो उम्र भर के लिए
भिगो जाएँ दिल की 
तन्हाइयों को, 
दे जाओ 
कुछ 
निगाहों के बेकराँ साए, ज़िन्दगी 
की इन घटती हुई परछाइयों 
को, नहीं चाहिए मुझे 
लामहदूद कोई 
वादा !
मुस्कराहट की इक बूंद ही काफ़ी 
है ख़ुश्क दिल की गहराइयों 
को - - 

* * 
- शांतनु सान्याल  
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
evening rain 1

04 मई, 2014

सब कुछ तै था - -

तुम्हारी अपनी थी ज्ञप्ति या इदराक 
जो भी कह लो, दरअसल सब 
कुछ तै था जनम के 
साथ, उसने 
लिखा 
था जो कुछ वो तुमने निभाया, बस 
वहीँ तक था सफ़र, ख़ूबसूरत 
वहम के साथ, तुम्हारा 
किरदार है ख़ुद 
इक आईना,
अक्स 
को क्या लेना किसी दीन ओ धरम 
के साथ, न देख मुझे यूँ बद - 
गुमां की नज़र से 
न तू है कोई 
कामिल 
इन्सां, न मेरा है कोई रिश्ता संग - -
ए सनम के साथ, दरअसल
सब कुछ तै था जनम 
के साथ - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
lotus-garden

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past