25 अप्रैल, 2014

रहस्यमयी संधि - -

बढ़ चले हैं जाने किस ओर कोहरे 
के घने बादल, ज़मीं और 
आसमां के बीच है 
कोई ख़ामोश 
समझौता,
या 
जिस्म और जां के दरमियां है - - 
कोई रहस्यमयी संधि,  
कुछ देर और यूँ 
ही सूखने दे 
ख़्वाबों 
के 
नाज़ुक सुराही, प्यास बुझाने से -
पहले न बिखर जाएँ कहीं,
क़ीमती क़तरें ! न 
खींच दिलों के 
बीच कोई 
लकीरें  
बहोत मुश्किल से मिलती हैं एक 
दूसरे से, मुहोब्बत भरी 
तक़दीरें - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 



http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
approaching fog in midnight

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past