30 अप्रैल, 2014

आख़री पहर - -

न जाने क्यों वो सो न सका 
रात भर, मुझ से मिलने 
के बाद, चाँद भी 
उभरा 
हमेशा की तरह बादलों से 
आख़री पहर, गुम सी 
रही कशिश गुलों 
की, न जाने 
क्यूँ - 
खिलने के बाद, गुमशुदा - - 
सी चाँदनी, आसमां 
भी रहा जलता 
बुझता 
तमाम रात, बेअसर से रहे 
फिर भी, न जाने क्यूँ 
दिल के जज़्बात,
बूँद बूँद ओस 
पिघलने 
के - 
बाद,  न जाने क्यों वो सो - - 
न सका रात भर, मुझ 
से मिलने के 
बाद, 

* * 
- शांतनु सान्याल 





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still-life-tulips

28 अप्रैल, 2014

रूबरू आईना - -

झुलसी हुई भावनाओं को फिर
पहली बारिश का अहसास
मिले, जिन्हें हमने
तलाशा उम्र
भर
काश, वही शख़्स यहीं दिल के
आसपास मिले, तपते
सहरा से निकल
तो आए
हम
किसी तरह, अब ये क़िस्मत -
की बात है कि कोई आम
या ख़ास मिले, इक
दीवानगी सी
रही मेरे
दिल
ओ दिमाग़ में, किसी सूरत ए
शफ़ाफ़ के लिए, जब भी
देखा आईना, बहोत
सारे ख़राश
मिले,

* *
- शांतनु सान्याल
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Vase Of Flowers-Claude Monet Painting

25 अप्रैल, 2014

रहस्यमयी संधि - -

बढ़ चले हैं जाने किस ओर कोहरे 
के घने बादल, ज़मीं और 
आसमां के बीच है 
कोई ख़ामोश 
समझौता,
या 
जिस्म और जां के दरमियां है - - 
कोई रहस्यमयी संधि,  
कुछ देर और यूँ 
ही सूखने दे 
ख़्वाबों 
के 
नाज़ुक सुराही, प्यास बुझाने से -
पहले न बिखर जाएँ कहीं,
क़ीमती क़तरें ! न 
खींच दिलों के 
बीच कोई 
लकीरें  
बहोत मुश्किल से मिलती हैं एक 
दूसरे से, मुहोब्बत भरी 
तक़दीरें - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 



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approaching fog in midnight

क़तरा ए अश्क - -

तमाम रात जागती रहीं आँखें,
हर एक पल ख़्वाबों ने 
दी दस्तक, फिर 
भी न जाने 
क्यों 
दिल के दरवाज़े खुल न पाए !
तमाम रात, मेरी रूह 
भटकती रही 
जुगनुओं 
के 
हमराह, नम साहिलों से उठ -
कर सफ़ेद बादलों की 
जानिब फिर 
भी न 
जाने क्यों, कोहरा ए जज़्बात 
क़तरा ए  अश्क में ढल 
न पाए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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art by mary maxam

23 अप्रैल, 2014

महकते अहसास - -

हथेली की इन उलझी हुई लकीरों 
से निकल, देखा है तुझे ऐ 
ज़िन्दगी जुगनू की 
तरह उड़ते 
हुए !
कभी दरख़्त ख़िज़ाँ की शाखों में,
कभी बूंद बूंद बिखरते हुए 
किसी की ख़ूबसूरत 
आँखों में, वो 
आँसू थे 
या -
नम जज़्बात या अक्स मोती के, 
जलते बुझते रहे देर तक, 
उसकी पलकों में 
मुहोब्बत के 
चिराग़ 
जादू भरे, देर तक मेरी साँसों में 
खिलती रही फूलों की 
क्यारियां - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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streak of emotion

21 अप्रैल, 2014

अस्थायी संधि - -

कुछ भी नहीं इस जहाँ में पायदार,
ताश के पत्तों से बने हैं तमाम 
मंज़िलें, इक हलकी सी 
हवा काफ़ी है सब 
कुछ बिखरने 
के लिए, 
फिर न जाने कहाँ है मुश्किल जो 
तुझे रात भर सोने नहीं देती, 
आईना से यूँ शिकायत 
ठीक नहीं, शफ़ाफ़ 
दिल है 
काफ़ी तेरे सँवरने के लिए, क्यों -
इतना है तू दीवाना रंग 
ओ नूर के पीछे,
ज़ख़्मी 
जिगर में मेरे, है नशा काफ़ी बिन 
पिए यूँ ही बहकने के लिए !

* * 
- शांतनु सान्याल 




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fragrant breeze

19 अप्रैल, 2014

मृगतृष्णा - -

था दर इंतज़ार किसी के लिए मैं 
अज़ल ए जहान से, पर्दे की 
ओट से देखता रहा वो 
शख़्स हर वक़्त,
लेकिन 
महरूम रही मेरी रूह उसकी - - - 
पहचान से, वो कोई ग़ैर 
न था, बल्कि मुझ 
में ही रह कर
खेलता 
रहा वो मेरे जिस्म ओ जान से - -
भटकती रही मेरी निगाहें,
कभी मंदिर, कभी 
मस्जिद,
उलझा रहा मेरा ज़मीर, निशाँ - -
ओ बेनिशाँ के दरमियान,
छलता रहा वो मुझे 
मृगतृष्णा की 
मानिंद
कभी गुलशन में, कभी तपते हुए 
रेगिस्तान से - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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tulip beauty

17 अप्रैल, 2014

वो नज़दीकियां - -

वो नज़दीकियां जो थीं दरमियां  
अपने रहने दे उसे, यूँ ही 
ज़माने की नज़र 
से ओझल,
कुछ 
पोशीदगी ज़रूरी है ज़िन्दगी में, 
उन्हें पसंद नहीं कोहरे में 
छुपी वादियां, कैसे 
बताएं उनको 
राज़ ए 
ख़ूबसूरती, ख़ामोश निगाहों की 
बंदगी में, जलते बुझते 
रहे चिराग़ ए 
मुहोब्बत,
न जाने कहाँ कहाँ, हम भटका -
किए उम्र भर उनकी 
दीवानगी में,
कभी 
समंदर का साहिल, कभी तपते 
रेत के टीले, इक राहत ए 
अहसास रहा फिर भी 
अनबुझ तिश्नगी 
में - - 


* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by buyuk

जानलेवा असर - -

न आज़मा, सब्र ए इंतहा मेरी,
उम्र भर गुज़रा हूँ मैं नंगे 
पांव काँटों भरी 
राहों से,
महल से सड़क की दूरी महज़ 
होती है पलक भर की,
पिघल जाते हैं 
ज़ुल्म की 
ज़ंजीरें, 
कभी न कभी दर्द भरी आहों से, 
जिस मरहले पे तू है खड़ा 
कोई ज़रूरी नहीं 
उसके आगे 
न हो 
कोई गहरी वादी, होती है बहुत 
महलक असर, बेगुनाह 
की कराहों में - - 

* *
- शांतनु सान्याल 

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scattering bliss

16 अप्रैल, 2014

मुझ से बिछुड़ कर - -

वो मुझ से बिछुड़ कर, किसी 
और से उम्र भर जुड़ न 
सका, खुली रहीं 
हर सिम्त 
दिल 
की वादियां, फूल, दरख़्त ओ 
बहते हुए झरने, क्या 
कुछ न थे उसके 
सामने, फिर 
भी न 
जाने क्यूँ, वो चाह कर भी - -
खुले आसमां पे उड़ न 
सका, कोई क़सम 
न थी हमारे 
दरमियां,
न ही 
कोई क़रारनामा, दिल की - - 
किताब थी खुली हुई 
उसके रूबरू,
फिर 
भी न जाने क्यूँ आसां लफ़्ज़ों 
की शायरी वो पढ़ न 
सका, वो मुझ से 
बिछुड़ कर, 
किसी 
और से उम्र भर जुड़ न सका,

* * 
- शांतनु सान्याल 

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painting by Maria Serafina

13 अप्रैल, 2014

उनकी आँखों का जादू - -

 कठपुतली की तरह थे मेरे जज़्बात 
सदियों से मुन्तिज़र, तिलिस्म 
उनकी निगाहों का बाँध 
रखा मुझे उम्र भर, 
चाह कर भी 
न तोड़ 
सका वो पोशीदा उल्फ़त के रेशमी -
धागे, हर सांस पे थी उनकी 
मुहोब्बत की मुहर !
जिस्म तो है 
मिट्टी का 
खिलौना जिसका बिखरना इक दिन 
है मुक़र्रर, उसने चाहा है मुझे 
लेकिन रूह से बढ़ कर, 
तिलिस्म उनकी 
निगाहों 
का बाँध रखा मुझे उम्र भर - - - - - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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Painting-by-John-Fernandes

12 अप्रैल, 2014

कोई ख़ास बात न थी - -

कोई ख़ास बात न थी मुझ में, फिर भी 
न जाने क्यूँ, इक ज़माने से वो 
मुझे भुला न सका, बहोत 
ख़्वाहिश थी उसके 
दिल में, कि 
बनाए 
राज़दार अपना, मगर चाह कर भी वो 
उम्र भर, अपने नज़दीक मुझे 
बुला न सका, दरअसल 
हर शख़्स की हैं 
अपनी 
ही तरज़ीह फ़ेहरिश्त, बहोत कोशिश -
की उसने लेकिन, उनींदी ख्वाबों 
को गहरी नींद सुला न 
सका, इक ज़माने 
से वो मुझे 
भुला 
न सका, चाह कर भी अपना बना न 
सका - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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paintings by Polly Thayer

11 अप्रैल, 2014

झुलस जाने के बाद - -

चुप्पी सी रही देर तक, उनसे मिलने 
के बाद, इक ठहराव सा रहा देर 
तक, महकती साँसों में यूँ  
शाम ढलने के बाद, 
कुछ ज़्यादा 
रंगीन 
थे बादलों के साए, अँधेरे भी आज - 
कुछ ज़्यादा ही सुरमयी नज़र 
आए, राहत ए तिश्नगी 
थी ज़िन्दगी में 
आज, 
मुद्दतों तड़पने के बाद, न जाने कहाँ 
से उड़ आते हैं, ख़ुश्बुओं के 
हमराह तेरी इश्क़ 
के यूँ संदली 
अहसास, 
इक आराम सा मिलता है, दिल को 
तमाम दिन झुलस जाने के 
बाद.

* * 
- शांतनु सान्याल  



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art by Charles-Sheeler

08 अप्रैल, 2014

महकते ख्वाब - -

रख जाओ कभी, कुछ महकते ख्वाब, 
दिल के क़रीब, मुद्दतों से खुली हैं 
चाहतों की खिड़कियाँ, 
न उड़ जाए कहीं 
तेज़ हवाओं 
में यूँ ही 
ख़ुश्बू ए जुनूं, हैं बेक़रार सी आजकल  
अहसासों की तितलियाँ, कहाँ 
रोके रुकती है मौसम 
ए बहार, चले भी 
आओ दिल 
की पनाहगाह में, उफ़क़ पार कौंधती -
हैं फिर कहीं बादलों में रह रह 
के बिजलियाँ - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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 Flower-Basket

07 अप्रैल, 2014

अनदेखा सा ख्वाब - -

डूबते सूरज ने फिर दी है रात को
शुभकामनाएं, अंधेरों से कह
दे कोई, ज़रा देर से
क़रीब आएं,
कुछ
पेशतर हो घना उनके मुहोब्बत
के साए, बिखरने दें कुछ
और ज़रा ख़ुश्बुओं
को हवाओं में
मद्धम -
मद्धम, फिर कोई मेरी निगाहों में
अनदेखा सा ख्वाब सजाएं,
यूँ तो ज़िन्दगी में
दर्द ओ ग़म
की कोई
कमी नहीं, किसी एक लम्हा ही
सही, दूर चाँदनी के लहर
में कोई मुझे यूँ ही
बहा ले जाएं,
जहाँ
खिलते हों जज़्बात के ख़ूबसूरत
फूल, रात ढलते - -

* *
- शांतनु सान्याल


06 अप्रैल, 2014

गुमनाम वजूद - -

वो काग़ज़ के फूल थे या कोई 
फ़रेब ए नज़र, उसकी 
हर बात पे यक़ीं
था लाज़िम, 
हमने 
बेफ़िक्र हो, ज़िन्दगी उसके -
नाम कर दी, यूँ तो सफ़र 
में फूलों से लदी,
वादियों की 
कमी न 
थी, फिर भी हमने, न जाने 
क्यूँ उसकी चाहत में,
काँटों के साए,
उम्र यूँ 
ही तमाम कर दी, ये सच है 
कहीं न कहीं, उसकी 
मुहोब्बत में थी 
ख़ुश्बू ए 
वफ़ा 
की ज़रा सी कमी, महसूस -
करने की ख्वाहिश में 
उसे, मुक्कमल 
वजूद 
अपना यूँही गुमनाम कर दी,

* * 
- शांतनु सान्याल 





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beauty of daisy

01 अप्रैल, 2014

महज़ नज़रों का धोखा - -

उन आख़री लम्हों का हिसाब 
न मांग, जब शाख़ से 
टूटा था मेरा 
वजूद, 
इक उम्र यूँ ही गुज़ार दी मैंने  
तुझ से जुदा होने में, 
किस दर्द का 
ज़िक्र 
करें यहाँ, पतझर के साथ ही 
उठ गए सभी ख़ुश्बुओं 
के ख़ेमे अपने 
आप,
बहोत मुश्किल है बताना कि 
उस गुबार क़ाफ़िले में 
कौन था अपना 
और कौन 
पराया, 
हक़ीक़त सिर्फ़ इतनी है, कि 
मैं आज भी हूँ, अकेला 
और बेशक कल 
भी था तन्हा,
तुम 
लाख दोहराओ दास्ताँ ए वफ़ा,
लेकिन ये सच कि यहाँ 
कोई नहीं अपना,
सिर्फ़ और 
सिर्फ़ 
हर चीज़ यहाँ, है महज़ नज़रों 
का धोखा - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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last o' clock

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