24 मार्च, 2014

अदृश्य स्फुलिंग - - -

फिर ज़िन्दगी तलाशती है उमस भरी 
दोपहरी, आँगन के किसी कोने 
में फिर उभरते हैं, कुछ 
कोयले से उकेरे 
गए, चौकोर 
घरों के 
खेल, नाज़ुक हाथों से फिर फिसलते 
से हैं, कौड़ियों में ढले हुए कुछ 
अनमोल पल, कुछ कच्ची 
प्यार की मज़बूत 
दीवारें, गिरते 
सँभलते 
से हैं फिर दिल के शीशमहल, फिर -
ज़िन्दगी में कोई कमी, कहीं 
न कहीं उभरती है किसी 
के  लिए, फिर शाम 
ढलते बारिश 
की बूंदों 
से निकलते हैं, अदृश्य स्फुलिंग - - -

* * 
- शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art - blue-hydrangeas-patrice-torrillo

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