19 फ़रवरी, 2014

अदृश्य अंतराल - -

खिलने और मुरझाने के बीच था -  
एक अदृश्य अंतराल, कुछ 
ख़ुशी, कुछ अफ़सोस,
तुम्हारी ख़ामोशी 
और मेरा 
अचानक निःशब्द हो जाना, बहुत 
कुछ कह जाता है अपने आप,
सूखे फूलों की थीं अपनी 
मज़बूरी, ये और 
बात थी 
कि, ख़ुश्बूओं ने भी दामन छोड़ - -
दिया, दरअसल इसमें दोष 
किसी का भी नहीं,
मौसम की है 
अपनी 
शर्तें, चाहे कोई उसे समझे या नहीं,
कोहरे में हैं डूबे दोनों किनारें,
जहाँ तुम्हें छू लें मेरी 
आहें, बस वहीं 
तक हैं 
महदूद मेरी ज़िन्दगी की तमाम -  
राहें।
* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
dahlia painting by carol https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXnNnD6ayQma4lktvN3NDVZzMZeNi5s-uGIoGVg3zhqY5TigHly8vTs5TG7jp60zsbMs5ZoOCgUSaIb02CopmX9PMMih3TrbcMRM25r_78Hy6JAp5u20WvcG6MNjG886MOElcozgS86yD1/s1600/dahlia+painting.JPG

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