15 नवंबर, 2013

कुछ वक़्त और चाहिए - -

 लहरों की हैं, शायद अपनी ही मजबूरियां,
कहाँ रहती हैं, किनारों से लग कर 
हमेशा ! न कहो मुझसे, कि 
तुम्हें है मुहोब्बत
बेपनाह,
मौसमी हवाओं का भरोसा क्या, पलक -
झपकते न उड़ा ले जाए बाम ए 
हसरत कहीं, न मिलो 
इस तरह कि 
ज़िन्दगी 
भूल जाए तफ़ावत, हक़ीक़त ओ ख्वाब 
के दरमियां, अभी अभी तुमने 
सिर्फ़ अहसास किया है 
मुझको, कुछ 
वक़्त -
और चाहिए अहसास ए बेक़रारी को, - -
अक़ीदा से ईमां तक पहुँचने 
के लिए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by _mucci

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