11 अक्तूबर, 2013

बहोत नज़दीकी ठीक नहीं - -

बहोत नज़दीकी ठीक नहीं, बेहतर हो, इक
पोशीदा दूरी हो दरमियां अपने,
बिखरना हो, जब कभी
तो यूँ बिखरें कि
किसी को
भी
दर्द महसूस न हो, न मांग मुझसे ख़्वाबों -
की ज़मीं, इक वही है मेरी अपनी
मिल्कियत ए हयात, वर्ना
शिफ़र हथेलियों में
आड़ी तिरछी
लकीरों
के सिवा, कुछ भी नहीं, न देख मुझे बारहा
यूँ उम्मीद भरी नज़र से, कि मैं हूँ
इक बहता हुआ दरिया ए
घुम्मकड़, न जाने
किस ओर
बह
जाऊँगा, बेहतर है लौट जाओ किनारे से -
चुपचाप, ग़ैर मुन्तज़िर तूफ़ान
घिरने से पहले - -
* *
- शांतनु सान्याल



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