04 सितंबर, 2013

सनम आतीश - -

न बुझे लौ, दिल की गहराइयों से उठता हुआ,
आँधियों की मजबूरियां रहे, अपनी 
जगह, सहरा ही सही मेरी 
क़िस्मत, तेरी 
निगाहों 
की परछाइयाँ रहे अपनी जगह, मैं उभर तो 
जाऊं बेचैन मौज ए दरिया से, दिल 
की रौशन बस्तियां रहे, अपनी 
जगह, इक गुमशुदा 
किनारा है - 
कहीं, तेरे लरज़ते लब के दरमियां, ख़ामोश 
लफ़्ज़ों की परेशानियाँ रहे, अपनी 
जगह, तू है कोई  मुजस्मा 
जादुई, या सनम 
आतीश !
अहतराक़ महताबी है मेरा इश्क़ कोई, - - 
गुलाबी आग में जलती तन्हाइयां -
रहे, अपनी जगह - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by barbara fox 2
अहतराक़ महताबी- चांदनी का दहन 
मुजस्मा  - मूर्ति 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past