27 मई, 2013

सुलहनामा - -

न जाने क्या था दिल में उसके, मुझे न थी 
ख़बर ज़रा, उन आँखों ने मुझे ले 
डूबा न जाने कहाँ, इक 
अंतहीन सफ़र 
और दूर
है किनारा, बहरहाल अब तेरी महफ़िल में 
लौटना है मुश्किल, अब कोई आवाज़ 
छूती नहीं मुझको, न कर यूँ 
टूटकर इंतज़ार लौटती 
सदा का !
अभी तलक है जवां वादी ए ज़िन्दगी, फिर 
कोई सुलहनामा पे कर ले दश्तख़त,
कि दहलीज़ पे रुका रुका सा 
है मौसम ए बहार, न 
कर यूँ फ़रेब
ख़ुद से,
कि ज़िन्दगी का सफ़र नहीं इतना आसां - -
* * 
- शांतनु सान्याल 
art by MAILEE FORD
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23 मई, 2013

नुक़ता ए मरकज़ - -

इजलास ख़ुफ़िया है शायद आख़री पहर,
तारों की मौजूदगी है कुछ कम, न
जाने कहाँ गए वो ज़रिया
ए रौशनी, कि चाँद
भी है गुमसुम,
सहमी
सहमी सी है चांदनी ! इक अजीब सी -
ख़ामोशी रही दरमियां अपने, न
तुम कुछ कह सके, और
न ही हम दिखा
पाए दाग़
ए दिल अपना, सिफ़र में देखते रहे रात
भर, मेरी सांसों में थी ख़ुशबू तेरी
चाहतों की पुरअसर , लेकिन
न तुम समझ पाए
और न हम ही
दिखा
पाए वो नुक़ता ए मरकज़ जहाँ खिलते हैं -
गुल जावेदां ख़ूबसूरत - -
* *
- शांतनु सान्याल

इजलास ख़ुफ़िया  -- गुप्त सम्मलेन
जावेदां - अमर
नुक़ता ए मरकज़  - केंद्र बिंदु

14 मई, 2013

अनश्वर समर्पण - -

इक तटबंध है मेरा वजूद, तू इक नदी अबाध्य 
बेक़ाबू ! वो प्रणय जो तुझे बाँध ले गहन 
अंतर्मन, जीवन चाहे वो उपासना 
अंतहीन, वो पावन चाहत 
जो ले जाए जीवन 
परम सत्य 
की ओर, पाए देह व प्राण परिपूर्ण सार्थकता - -
इक अहसास जो महके अन्दर - बाहर 
छद्म विहीन, कर जाए आत्म -
विभोर  हर  सिम्त 
हर ओर !
वो समर्पण जो हो अनश्वर ज्वलंत अग्नि के 
भी ऊपर !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by ALBERT BIERSTADT

10 मई, 2013

तहे दिल आईना - -

वो आज भी खड़ा है उसी मोड़ पर, जहाँ 
कभी थीं आबाद बस्तियां, कशिश 
दिल की जाती नहीं, बदल 
जाए चाहे ज़माना 
जितना,
वो इंतज़ार जो सांस से बंधा हो ताउम्र,
बहोत मुश्किल है उसका राह 
बदलना, मुहाजिर 
जज़्बात की 
अपनी 
है कहानी, मंज़िल दर मंज़िल इक - - 
सफ़र अंतहीन, चेहरा दर 
चेहरा अक्स उसका,
हर मुस्कान पे 
झलक 
उसकी, वो पोशीदा रह कर भी हो - - - 
शामिल, तहे दिल आईना !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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amazing painting by RASSOULI

09 मई, 2013

नज़र की रौशनी - -

हैरां हूँ मैं, देख तेरी नज़र की रौशनी !
हर सिम्त है फैला इक अहसास
आसमानी, नूर महताब
है इश्क़ तेरा, जाए
दिल के बहोत
अन्दर,
हर चेहरे पे नज़र आये अक्स ताबां,
अँधेरे उठा चले गोया ग़मगीन
ख़ेमा, उभर चली है ज़मीर
की ख़ूबसूरती, इक
ख़ुद तज़जिया
जज़्बात
है बेक़रार, ज़िन्दगी को मुक्कमल - -
मुतासिर कर जाने को - -
* *
- शांतनु सान्याल
 

06 मई, 2013

उजाले की तलाश - -

न कर मेरा इंतज़ार, आख़री लोकल से मैं 
न लौट पाऊंगा, खो चुका हूँ मैं दुनिया 
की भीड़ में इक बेनाम अजनबी 
की तरह, बहोत मुश्किल 
है मुझे खोज पाना,
कि बंद कर 
लो 
सदर दरवाज़ा रात गहराने से पहले, न -
कर किसी दस्तक की ख़्वाहिश,
है हवाओं में ज़हर आलूद 
उँगलियों के दाग़ 
नुमायां !
न 
जाने किस रूप में लूट जाए कोई यूँ मेरा 
नाम ले के, दर्द तेरा है कितना 
असली या बातिल मुझे 
ख़बर नहीं, फिर 
भी मेरी 
जां !
मुहोब्बत का भरम रहने दे सुबह होने - - 
तलक, कि उभर सकता हूँ मैं 
फिर अचानक, अब तक 
साहिल की तलाश 
है मेरे दिल में 
ज़िन्दा !
* * 
- शांतनु सान्याल 

इक अदद सिफ़र - -

न पूछ तन्हाई का आलम बिछुड़ जाने के बाद,
न सुलग पाए, फिर चिराग़ ए जज़्बात 
इक बार बुझ जाने के बाद, बहोत 
चाहा, बहोत समझाया, न 
बस पायी दिल की 
बस्ती दोबारा, 
उजड़ जाने के बाद, यूँ तो राहतों के नामज़द - -
कम न थे, फिर भी लाइलाज ही रहा 
दर्दे जिगर चोट खाने के बाद,
बेअख्तियार वजूद 
मेरा, रूह भी 
भटके सहरानशीं, सितारा शिकस्ता कोई, है - -
अब नसीब मेरा, इक अदद सिफ़र के 
सिवा ज़िन्दगी अब कुछ भी 
नहीं, कि लहराती हो 
जैसे कोई कटी 
पतंग ज़मीं 
ओ आसमां के दरमियाँ डोर से टूट जाने के बाद,
* * 
- शांतनु सान्याल   
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Thomas Houck

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